Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ८ सू० १ अन्तरनिरूपणम् ३६३ हे भदन्त ! ब्रह्मलोकस्य खलु लान्तकस्य च कल्पस्य परस्परं कियद् अबाधया अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह-' एवं चेव' हे गौतम ! एवमेव-पूर्वोक्तरीत्यैव, ब्रह्मलोकस्य लान्तकस्य च कल्पस्य परस्परम् असंख्येयानि योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरम् -व्यवधानं पज्ञप्तम् । गौतमः पृच्छति-' तयस्स णं भंते ! महामुक्कस्स य कप्पस्स केवइए ?' हे भदन्त ! लान्तकस्य खलु महाशुक्रस्य च कल्पस्य परस्परं कियद् अबाधया अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह-' एवं चेव' हे गौतम ! एवमेव-पूर्वोक्तरीत्यैर, लान्तकस्य महाशुक्रस्य च कल्पस्य परस्परम् अबाधया असंख्येयानि योजनसहस्राणि अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् , 'एवं महामुकास्स कप्पस्स सहस्सारस्त य' एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव, महाशुक्रस्य कल्पस्य सहस्त्रारस्य च कल्पस्य परस्परम् असंख्यानि अबाधया अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् ? 'एवं सहस्सारस्त आणयपाणयकप्पाणं' एवं पूर्वोक्तरीत्यैव, सहस्राय कप्पस्स केवयं' हे भदन्त ब्रह्मलोक का और लान्तक कल्प का परस्पर में अन्तर कितना कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'एवं चेव' हे गौतम! ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प का अन्तर परस्पर में असंख्यात हजार योजन का कहा गया है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं'लंतयस्स णं भंते ! महामुक्कस्स य कप्पस्स केवइए०' हे भदन्त ! लान्तक
और महाशुक्र कल्प का परस्पर में अबाधा को लेकर व्यवधान कितना कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं चेव' हे गौतम ! लान्तक
और महाशुक्र कल्प का अबाधा को लेकर परस्पर में अन्तर असंख्यात हजार योजन का कहा गया है । 'एवं महासुकास्स कप्पस्स सहस्सारस्स य' इसी प्रकार से महाशुक्र कल्प का और सहस्रारकल्प का परस्पर में अन्तर अबाधा को लेकर असंख्यात हजार योजन का कहा गया है। ' एवं सहस्सारस्स आणयपाणयकप्पाणं' इसी प्रकार से
महावीर प्रसुन उत्तर-“ एवं चेव" है गौतम ! प्राय ५६५ मन લાન્તક કલ્પ વચ્ચે પણ અસંખ્યાત હજાર એજનનું અંતર કહ્યું છે.
गौतम स्वाभान प्रश्न-" लंतयस्स णं भंते ! महासुक्कस्स य कम्पस्स केवइए०?" हे सगवन् ! ४६५ मन भशु पये मत छ ।
महावीर प्रभुना उत्तर-" एवं चेत्र” 3 गौतम ! सात मन મહાશક કપ વચ્ચે પણ અસંખ્યાત હજાર એજનનું અંતર કહ્યું છે. "एवं महासुक्कस्स कप्पस्व सहस्सारस्स य" मे प्रमाणे माशु ४६५ मन सडसार ४६५ १२ये ५९] मसच्यात १२ यासननु मत२ छ, “ एवं सहस्सारस्स आणयपाणय-कप्पाणं" से प्रभारी सना२ ६५थी मात.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧