Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१४ उ०८ सू०१ अन्तरनिरूपणम्
३६१ पृच्छा, भगवानाह-'गोयमा ! सत्तनउए जोयणसए अबाहाए अंतरे पणत्ते' हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथिव्याः ज्योतिषिकस्य च परस्परम् नवतियुक्तानि सप्त योजनशतानि अबाधया अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् । गौतमः पृच्छति-'जोइसियरस णं भंते ! सोहम्मीसाणाणय कप्पाणं केवइए पुच्छा ? ' हे भदन्त ! ज्योतिषिकस्य खल सौधर्मेशानयोश्च कल्पयोः परस्परं कियद् अबाधया, अन्तरं-व्यवधानं प्रज्ञप्तम् ? इति पृच्छा, भगवानाह-गोयमा ! असंखेज्जाई जोयण जाव अंतरे पण्णत्ते' हे गौतम ! ज्योतिषकस्य सौधर्मेशानयोश्च कल्पयोः असंख्येयानि योजन यावत् योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं व्यवधानं प्रज्ञप्तम् । गौतमः पृच्छति'सोहम्मीसाणाणं भंते सणंकुमारमाहिंदाणय केवइए.' हे भदन्त ! सौ. स्पर में कितना अन्तर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सत्तनउए जोयणसए अवाहाए अंतरे पण्णत्ते' हे गौतम ! रत्नप्रभापृथिवी एवं ज्योतिषिक इनमें परम्पर में व्यवधान रूप अन्तर ७९० योजन का कहा गया है-अर्थात् रत्नप्रभापृथिवी से लगाकर ७९० योजन ऊपर में ज्योतिषिक मण्डल कहा गया है।
अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जोइसियस्तणं भंते ! सोहम्मी साणाण य कप्पाणं केवइए पुच्छा' हे भदन्त !ज्योतिषिक और सौधर्मईशान कल्पों में परस्पर में कितना अन्तर कहा गया है इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! असंखेजाई जोयण जाव अंतरे पण्णत्ते' हे गौतम ! ज्योतिषिक में और सौधर्म ईशान कल्पों में परस्पर में असंख्यात हजार योजन का अन्तर-व्यवधान कहा गया है। अब गौतम ! प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सोहम्मीसाणाणं भंते ! सणंकुमार
भडावीर प्रभुने। उत्तर-“ सतनउए जोयणसए अबाहाए अतरे पणत्ते " હે ગૌતમ! રત્નપ્રભા પૃથ્વી અને જ્યોતિષિક મંડળ વચ્ચેનું અંતર ૭૯૦ જનનું કહ્યું છે. એટલે કે રતનપ્રભા પૃથ્વીથી ૭૦ એજન ઊંચે જવાથી તિષિક મંડળ આવે છે.
गौतम स्वाभीनी प्रश्न-" जोइसियरस णं भंते ! सोहम्मीसाणाण य कप्पाणं केवइए पुच्छा " ३ ला! न्योतिष: मने सौधर्म-शान દેવલોકની વચ્ચે કેટલું અંતર કહ્યું છે?
मडावीर प्रसुनी हत्त२-" गोयमा ! असंखेज्जाइं जोयण जाव अंतरे पण्णते, गौतम ! ज्योतिषः म भने सोधमान ४८पानी १२ये અસંખ્યાત હજાર જનનું અંતર કહ્યું છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧