Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे एवं चेव' तिर्यग्योनिका, एवमेव-पूर्वोक्तवदेव तिर्यग्योनिकस्य भवा. थतया तुल्यो भवति, तिर्यग्योनिकव्यतिरिक्तस्य तु भवार्थतया नो तुल्यो भवति ! 'एवं मणुस्से, एवं देवेवि' एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव, मनुष्यो मनुष्यस्प भवार्थतया तुल्यो भवति, मनुष्यो मनुष्यव्यतिरिक्तस्य तु भवार्थतया नो तुल्यो भवति, एवंपूर्वोक्तरीत्यैव, देवोऽपि देवस्य भवार्थत्या तुल्यो भवति, देवो देवव्यतिरिक्तस्य तु भवार्थतया नो तुल्यो भवति, प्रस्तुतार्थमुपसंहरमाइ-से तेणटेणं जाव भवतुल्लए' हे गौतम ! तत्-अथ, तेनार्थेन यावत्-स एवमुच्यते भवतुल्यकं भवतुल्यकं भवतुल्यकपदोक्तस्वरूपं भवति । गौतमः पृच्छति-'से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-भावतुल्लए भावतुल्लए ' हे भदन्त ! तत्-अथ, केनार्थेन-कथं तावत् एवमुच्यतेभावतुल्यकं भावतुल्यकमिति ? कस्तावत् भावतुल्यकशब्दार्थः ? प्रश्नः भगवानाहनिक जीव तिर्यग्भव से व्यतिरिक्त भववाले के साथ निर्यग्भव की अपेक्षा तुल्य नहीं होता है । 'एवं मणुस्से, एवं देवे वि' इसी प्रकार का कथन मनुष्य एवं देव के संबंध में भी जानना चाहिये। अर्थात् एक मनुष्य दूसरे मनुष्यभव की अपेक्षा से तुल्य होता है, मनुष्यभव से व्यतिरिक्त के साथ वह मनुष्यभव की अपेक्षा से तुल्य नहीं होता है । देव भी अपने देवभव की अपेक्षा से दूसरे देव के तुल्य होता है, देवभव से अतिरिक्त के साथ यह देवभव की अपेक्षा से तुल्य नहीं होता है । 'से तेणटेणं जाव भवतुल्लए' इसी कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि भवतुल्यक शब्द भव से तुल्य अर्थ का वाचक होता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, भाव तुल्लए भावतुल्लए' हे भदन्त ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि भावतुल्यक यह पद भावतुल्यक अर्थ का वाचक होता है। अर्थात् नथी. "एवं मणुस्से, एव देवे वि" मे ४थन मनुष्य भने हवना વિષયમાં પણ સમજવું. એટલે કે એક મનુષ્ય બીજા મનુષ્યની સાથે ભવની અપેક્ષાએ સમાન હોય છે, પરંતુ મનુષ્ય સિવાયના ભવવાળા જીવ સાથે, ભવની અપેક્ષાએ એજ મનુષ્ય સમાન હેતે નથી એક દેવ દેવભવની અપેક્ષાએ બીજા દેવના સમાન છે, પરંતુ એ જ દેવ દેવભવ સિવાયના ભવवापानी साथै सनी अपेक्षा समान 3ात. नथी. “से तेणट्रेणं जाव भवतुल्लए" है गौतम ! ते २0 में से घुछ है तुझ्य' शve ભવની અપેક્ષાએ તુલ્યને વાચક છે.
वे गौतम स्वामी महावीर प्रसुन सा प्रश्न पूछे छ,-" से केण*णं भवे! एवं वुच्चइ, भावतुल्लए भावतुल्लए ?” उससन् । सा५ ॥ ॥२॥ એવું કહે છે કે “ભાવતુલ્યક” પદ ભાવની અપેક્ષાએ સમાનતાનું વાચક छ? मे “लातुक्ष्य' पहने । म थाय छ ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧