Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ५ सू० १ नै० विशेषपरिणामनिरूपणम् २५९ गच्छेत् इति ? भगवानाह - ' गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता, वं जहा - विग्गहग समावनगा य अविग्गहग समावन्नगा य' हे गौतम ! असुरकुमारा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-विग्रहगतिसमापन्नकाश्च, अविग्रहगतिसमापन्नकाच, 'तत्थ णं जे से विग्गहगइसमावर असुरकुमारे, से णं एवं जहेव नेरइए जाव कमइ' तत्र तयोर्मध्ये, खलु योऽसौ विग्रहगतिसमापनकः सूक्ष्मकार्मणशरीरोपपन्नः असुरकुमारो भवति, स खलु एवं पूर्वोक्तरीत्यैव यथैव नैरविको यावत् विग्रहगतिसमापनकोऽग्निकायस्य मध्यमध्ये न व्यतिव्रजेत् किन्तु न स तत्र ध्मायेत् - दह्येत् नापि तत्र तदुपरिअग्निशस्त्र क्रामति, इत्युक्तम्, तथैव विग्रहगतिसमापन को सुरकुमारोऽग्निकायस्य मध्यभागेन व्यतित्रजेत्, किन्तु स न तत्र ध्यायेत्-दोत्, -नो वा तत्रतदुपरि, अग्निशस्त्रं क्रामति, तस्यापि कार्मणसूक्ष्मशरीरतया अग्निना दाह्यत्वा प्रभु कहते हैं - 'गोमा' हे गौतम! 'असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता' असुरकुमार दो प्रकार के कहेगये हैं जो इस प्रकार से हैं- 'विग्गहग इसमावनगा य, अविग्गहगहसमावन्नगा य' एक असुरकुमार ऐसे होते हैं जो विग्रहगति समापन्नक होते हैं और दूसरे असुरकुमार ऐसे होते हैं जो विग्रहगतिसमापन्नक नहीं होते हैं 'तत्थ णं जे से विग्गहगइसमा वन्नए असुरकुमारे, से णं एवं जहेब निरइए जाव कमइ' इनमें जो असुरकुमार विग्रहगतिसमापन्नक होता है - सूक्ष्मकार्मण शरीरवाला होता है, वह जैसे विग्रहगतिसमापन्नक नारक अग्निकाय के बीच में से होकर निकल जाता है परन्तु उस पर अग्निकायरूप शस्त्र का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् वह उससे बिलकुल नहीं जलता है। क्योंकि उसका सूक्ष्मकार्मणशरीर होता है अतः उसमें उसके द्वारा दाता
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महावीर अलुना उत्तर- " गोयमा !" हे गौतम! “ असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता " असुरकुमारो मे प्रहारना उद्या छे. तंजा "ते प्रहारो नीचे प्रमाणे छे-" विगाहगइ समावन्नगा य, अविगहगइ समावन्नगा (૧) વિગ્રહગતિસમાપન્નક અસુરકુમાર અને (૨) અવિગ્રહગતિસમાપન્નક અસુરકુમાર. तत्थ णं जे से विग्गहगइस मावन्नए असुरकुमारे, सेणं एवं जहेव निरइए जाव कमइ " तेमांथी ने असुरकुमार विगतिसमापन होय छेસૂક્ષ્મ કા ણુશરીરવાળા હાય છે, તે વિગ્રહૅગતિસમાપન્નક નારકની જેમ અગ્નિકાયની વચ્ચે થઈને નીકળી જાય છે, પરન્તુ તેના પર અગ્નિકાય રૂપ શસ્ત્રની કેાઈ પણ અસર થતી નથી, એટલે કે તે અગ્નિકાય વડે બિલકુલ ખળતા નથી, કારણ કે તેને સૂમકામણુ શરીર હાય છે, તેથી તે અગ્નિકાય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧