Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीने ऽग्निकायस्य मध्ये व्यतिव्रजेत् , अस्त्येकः कश्चित् नैरयिकः अग्निकायस्य मध्ये नो व्यतिव्रजेत् । गौतमः पृच्छति-'असुरकुमारे णं भंते ! अगणिकायस्स पुच्छा?' हे भदन्त ! असुरकुमारः खलु किम् अग्निकायस्य मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् ?उल्लङ्घ्य गच्छेत् ? इति पृच्छा, भगवानाह-'गोयमा ! अत्यंगइए वीइवएज्जा, अत्यंगइए नो वीइवएज्जा' हे गौतम ! अस्त्येकः कश्चित् , असुरकुमारो व्यति. व्रजेत्-अग्निकायमुल्लय गच्छेत् , अस्त्येकः कश्चित् असुरकुमारो नो व्यतिब्रजेव-अग्निकार्य नोल्लङ्घय गच्छेत् । गौतमः पृच्छति-से केणटेणं भंते ! एवं चुच्चइ जाव नो वीइवएज्जा ? ' हे भदन्त ! तत् अथ केनार्थेन-कथं तावत् , यावत् , एवमुच्यते-अस्त्येकः कश्चित् असुरकुपारो व्यतिव्रजेत् अग्निकायमुल्लङ्घ्य गच्छेत् , अस्त्येकः कश्चित् असुरकुमारोऽग्निकायं नो व्यतिव्रजेत्-नोल्लङ्घ्य नारक अग्निकाय के बीचोंबीच से होकर निकल जाता है और कोई नारक नहीं निकलता है ।
अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'असुरकुमारे णं भंते ! अगणिकायस्स पुच्छा' हे भदन्त ! असुरकुमार क्या अग्निकाय के बीचों बीच से होकर निकल जाता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम ! अस्थेगहए वीइवएज्जा, अत्थेगइए नो वीइवएज्जा' कोई एक असुरकुमार ऐसा होता है जो अग्निकाय के बीचों बीचमें से होकर निकल जाता है और कोई असुरकुमार ऐसा होता है जो उसके बीचोंबीच से होकर नहीं निकल सकता है। अब इस पर गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चह जाव नो वीइव. एज्जा' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि कोई एक असुरकुमार अग्नि काय के बीचों बीच में से होकर निकल जाता है और कोई असुरकुमार उसके बीचों बीच से होकर नहीं निकलता है ? इस पर
गौतम स्वामीना प्रश्न-" असुरकुमारे ण भते ! अगणिकायस्म पुच्छा" હે ભગવન્! શું અસુરકુમાર અગ્નિકાયની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે?
महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा !" गौतम! " अत्थेगइए वीइवएज्जा, अत्थेगइए नो वीइवएज्जा" 5 असुरमा२ ममियनी पथ्ये થઈને નીકળી શકે છે, અને કઈ કઈ અસુરકુમાર તેની વચ્ચે થઈને નીકળી શકતું નથી.
गौतम स्वामीना प्रश्न-" से केण?ण भते ! एवं वुच्चइ जाव नो वीइवएज्जा " सगवन् ! मा५ ।। ४।२७ मे । छ। है असुरકુમાર તેની વચ્ચેથી નીકળી શકે છે અને કોઈનીકળી શકતે નથી ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧