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२७. से बेमि-संति पाणा उदयणिस्सिया जीवा अणेगा। इहं च खलु भो अणगाराणं उदय-जीवा वियाहिया। सत्थं चेत्थ अणुवीइ पास। पुढो सत्थं पवेइयं। अदुवा अदिण्णादाणं। २७. मैं कहता हूँ-जल के आश्रित अनेक प्रकार के अन्य जीव भी रहते हैं। हे मनुष्य ! इस अनगार दर्शन में जल को 'जीव' माना है।
जलकाय के जो शस्त्र हैं, उन पर चिन्तन करके देख ! भगवान ने जलकाय जीवों के अनेक शस्त्र बताये हैं।
(जलकाय की हिंसा, प्राणातिपात का दोष ही नहीं) किन्तु अदत्तादान-चोरी का दोष भी है।
27. I say—Numerous types of other beings also thrive in
water.
O man ! In this anagar (ascetic) philosophy water itself is considered to be a living thing.
Ponder over the things that are weapons against waterbodied beings. Bhagavan has said about many weapons against water-bodied beings.
(Violence against water-bodied beings is not just the sin of terminating life) it is also the sin of taking what is not given (theft).
विवेचन-अप्काय को सजीव-सचेतन मानना जैनदर्शन की मौलिक मान्यता है। भगवान महावीरकालीन अन्य दार्शनिक जल को सजीव नहीं मानते थे, किन्तु उसमें आश्रित अन्य जीवों की सत्ता स्वीकार करते थे। तैत्तिरीय आरण्यक में 'वर्षा' को जल का गर्भ माना है और जल को 'प्रजनन शक्ति' के रूप में स्वीकार किया है। 'प्रजनन क्षमता' सचेतन में ही होती है, अतः सचेतन होने की धारणा का प्रभाव वैदिक चिन्तन पर पड़ा है, ऐसा माना जा सकता है। किन्तु मूलतः अनगार दर्शन को छोड़कर अन्य सभी दार्शनिक जल को सचेतन नहीं मानते थे। इसलिए यहाँ दोनों तथ्य स्पष्ट किये गये हैं-(१) जल सचेतन है। (२) जल के आश्रित अनेक प्रकार के छोटे-बड़े जीव रहते हैं। शस्त्र परिज्ञा : प्रथम अध्ययन
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Shastra Parijna: Frist Chapter
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