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He should perfectly assimilate this ascetic attitude in his life. -So I say. विवेचन-प्रस्तुत दो सूत्रों में ब्रह्मचर्य की साधना के विघ्नरूप स्त्री-संग का वर्जन तथा विषयों की उग्रता कम करने के लिए तप आदि का निर्देश किया है।
कामोदय के सम्बन्ध में व्याख्या ग्रंथों में विशेष विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है, जैसे-निशीथ भाष्य चूर्णि, गाथा ५१४ से ५१६ में बताया है
कामवासना का उदय दो प्रकार का होता है-(१) सनिमित्तक, तथा (२) अनिमित्तक। जो कामवासना बाह्य कारणों से उत्पन्न होती है वह सनिमित्तक है। आन्तरिक कारणों से उत्पन्न होने वाली अनिमित्तक है।
सनिमित्तक के तीन कारण हैं-कामवर्द्धक शब्द सुनने से, रूप देखने से तथा पूर्वभुक्त भोगों की स्मृति से। अनिमित्तक के भी तीन कारण हैं-कर्मोदय के कारण, आहार के कारण और शरीर के कारण। स्थानांगसूत्र में भी काम-संज्ञा की उत्पत्ति के चार कारण बताये हैं, उनमें एक मुख्य कारण है-शरीर में माँस और रक्त का अधिक उपचय होना।
इसी दृष्टि से सूत्र १६५ में काम-निवारण के लिए कुछ खास उपाय बताये गये हैं। यथा(१) नीरस भोजन करना-विगय-त्याग, (२) कम खाना-ऊनोदरिका अथवा आयंबिल आदि करना, (३) ऊर्ध्वस्थान-शीर्षासन, वृक्षासन आदि करना, (४) कायोत्सर्ग-काया की ममता से मुक्त हो खड़े, बैठे या लेटकर ध्यान करना, (५) ग्रामानुग्राम विहार-एक स्थान पर अधिक न रहना, (६) आहार-त्याग-दीर्घकालीन तपस्या करना, तथा (७) स्त्री-संग के प्रति मन को सर्वथा विमुख रखना। इन उपायों में से जिस साधक के लिए जो उपाय अनुकूल और लाभदायी हो, उसी का अधिक अभ्यास करना चाहिए। जिस-जिस उपाय से विषयेच्छा की निवृत्ति हो, वह-वह उपाय करना चाहिए। सूत्र १६६ में भी काम-कथा आदि का वर्जन करने का निर्देश दिया है।
॥ चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥ Elaboration-In the preceding two aphorisms direction has been given to avoid affiliation with women, the impediment to the practice of celibacy, and to practice austerities to weaken the intensity of carnal desires.
The explanatory literature has discussed in details on the subject of libido. For example, verses 514 to 516 of Nisheeth Bhashya Churniere inform आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra B
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