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विमोक्खो : अट्ठम अज्झयणं विमोक्ष : अष्टम अध्ययन
आमुख + आचारांग सूत्र के अष्टम अध्ययन का नाम 'विमोक्ष' है। + 'विमोक्ष' का अर्थ है-परित्याग करना, विसर्जन करना। निक्षेप दृष्टि से विमोक्ष-द्रव्य और भाव दो प्रकार का है। बेड़ी आदि किसी बन्धन रूप द्रव्य से छूट जाना-'द्रव्य-विमोक्ष' है
और आत्मा को बन्धन में डालने वाले कषायों अथवा कर्मों के बन्धन रूप संयोग से मुक्त हो जाना 'भाव-विमोक्ष' है। इस अध्ययन में भाव-विमोक्ष का प्रतिपादन है। भाव-विमोक्ष भी दो प्रकार का है-देश-विमोक्ष
और सर्व-विमोक्ष। सशरीर दशा में मिथ्यात्व, कषाय, अविरत आदि से क्रमशः मुक्त होना देश-विमोक्ष है तथा सर्वथा विमुक्त सिद्धों का ‘सर्व-विमोक्ष' होता है। + प्रथम उद्देशक में असमनोज्ञ-विमोक्ष का, द्वितीय उद्देशक में अकल्पनीय-विमोक्ष का तथा
तृतीय उद्देशक में इन्द्रिय-विषयों से विमोक्ष का वर्णन है। चतुर्थ उद्देशक से अष्टम उद्देशक तक एक उपकरण और शरीर के परित्याग रूप विमोक्ष का प्रतिपादन है। जैसे कि चतुर्थ में वैहानस और गृद्धपृष्ठ नामक मरण का, पंचम में भक्त-परिज्ञा का, छठे में एकत्वभावना और इंगितमरण का, सप्तम में भिक्षु प्रतिमाओं तथा पादपोपगमन का एवं अष्टम उद्देशक में द्वादशवर्षीय संलेखनाक्रम एवं भक्त-परिज्ञा, इंगितमरण एवं पादपोपगमन के स्वरूप का प्रतिपादन है। + प्रस्तुत अध्ययन के चतुर्थ उद्देशक में उपकरण-विमोक्ष के प्रसंग में सचेल-अचेल की चर्चा है। मुनि चार प्रकार के होते हैं-(१) तीन वस्त्रधारी, (२) दो वस्त्रधारी, (३) एक वस्त्रधारी तथा (४) अचेल-अवस्त्र। ये सभी मुनि जिनेश्वर भगवान की आज्ञा के आराधक हैं। अनेकान्त दृष्टि का यह बीज मंत्र इस अध्ययन में है। इसी अध्ययन के चौथे से अष्टम अध्ययन तक शरीर-विमोक्ष के प्रसंग में समाधिमरण की विशिष्ट साधना पद्धति का वर्णन है। + नियुक्ति एवं टीकाकार ने बताया है कि भगवान महावीर के समय में अनेक धर्मसंघ थे। जिनका आचार-विचार निर्ग्रन्थों से सरल व अन्य शारीरिक सुख-सुविधाओं से युक्त था। नवदीक्षित व अल्पज्ञानी सुख-सुविधाओं की आकांक्षा रखते हुए उनकी तरफ सहज आकर्षित
हो सकता है इसलिए उनका अधिक परिचय व सम्पर्क रखना अहितकर है। विमोक्ष : अष्टम अध्ययन
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Vimoksha : Eight Chapter
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