Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 499
________________ EARTPHONORIODAIADMRODAISHNOVAPPROPROCARDAMODAKOPARDARODYOTIOPTODATottottostostoryse " * वृत्ति-संक्षेप, फिर रसवर्जित आदि विविध तप करके शरीर-संलेखना करने का विधान है। यदि आयु और शरीर-शक्ति पर्याप्त हो तो साधक बारह भिक्षु प्रतिमाएँ स्वीकार करके शरीर को कृश करता है। (भगवती आराधना, मूल २४६ से २४९, २५७ से २५९, सागारधर्मामृत ८/२३) ___ 'आरम्भाओ तिउट्टइ'-में आरम्भ शब्द हिंसा के अर्थ में नहीं किन्तु शरीर धारण करने की प्रवृत्तियाँ आरम्भ शब्द से सूचित की हैं। साधक उनसे सम्बन्ध तोड़ देता है, यानी अलग रहता है। यहाँ चूर्णिकार 'कम्मुणाओ तिउट्टइ' ऐसा पाठान्तर मानकर अर्थ करते हैं-अष्टविध कर्मों को तोड़ता है। वृत्तिकार ने 'अह भिक्खु गिलाएज्जा... ' इस पंक्ति के दो विशेष अर्थ किये हैं(१) संलेखना-साधना में स्थित भिक्षु को आहार में कमी कर देने से कदाचित् आहार के बिना मूर्छा-चक्कर आदि ग्लानि होने लगे तो संलेखना-क्रम को छोड़कर विकृष्ट तप न करके आहार सेवन करना चाहिए। (२) अथवा आहार करने से अगरं ग्लानि-अरुचि होती हो तो भिक्षु को आहार का त्याग कर देना चाहिए। ___ संलेखना काल के बीच में ही यदि आयुष्य के पुद्गल सहसा क्षीण होते मालूम दें तो विचक्षण साधक को उसी समय बीच में ही संलेखना क्रम छोड़कर भक्त प्रत्याख्यान आदि अनशन स्वीकार कर लेना चाहिए। किं चुवक्कमं जाणे ' पद से यह सूचना दी है। भक्त प्रत्याख्यान अनशन की विधि इस प्रकार है-सर्वप्रथम स्थान-विशुद्धि करे-ग्राम अरण्य आदि में निर्दोष स्थान का चुनाव करे। फिर सेवा करने वाले प्रातिचारिक भिक्षुओं के साथ वहाँ जाये, फिर स्थण्डिल भूमि की प्रतिलेखना करे। स्थण्डिल का अर्थ है जिस स्थान पर मृत शरीर का परिष्ठापन किया जायेगा। उस स्थान की प्रतिलेखना स्वयं करे या प्रतिचारक गीतार्थ हो तो वे करें। तथा अनशन काल में आने वाले परीषहों, उपसर्गों को समभावपूर्वक सहन करता हुआ काल का पारगामी बने। सूत्र २३४ में अज्झत्थं सुद्धमेसए-शब्द की व्याख्या इस प्रकार की जाती है-साधक अपने भीतर झाँके, जहाँ तक राग-द्वेष की ग्रन्थियाँ हैं-वहाँ तक शुद्ध अध्यात्म नहीं दीख पड़ता। इन ग्रन्थियों को खोलकर भीतर गहराई में उतरें, वहाँ आत्मा के शुद्ध स्वरूप का दर्शन हो सकता है। (आचारांग भाष्य, पृ. ३९६-३९७) __Elaboration-Proper (samyak) depletion (lekhan) of body and passions is called samlekhana. It is of two types-external and internal. To give up food (etc.) is external samlekhana and to deplete passions and veils of karmas is internal samlekhana. With reference to time, samlekhana is of three types-minimum, medium and maximum. Minimum is of 12 fortnight duration, आचारांग सूत्र ( ४४२ ) Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569