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PANDAYAVATOPATOVAKOVAYODAYODACODAKOVAROBARODAMODARODAROINOUTODARobitorARODARUDRROEMORROERODKOSHODIG
२३९. पाणा देहं विहिंसंति ठाणाओ ण विउब्भमे।
आसवेहिं विवित्तेहिं तिप्पमाणोऽहियासए॥ २३९. (उस स्थिति में मुनि ऐसा चिन्तन करे) ये प्राणी मेरे शरीर का विघात कर रहे हैं, (किन्तु ज्ञानादि आत्म-गुणों का नहीं) ऐसा विचार कर उन्हें न हटाए और न ही उस स्थान से उठकर अन्यत्र जाये। आम्रवों (हिंसादि) से पृथक् हो जाने के कारण (अमृत से सिंचित की तरह) वह तृप्ति अनुभव करता हुआ उपसर्गों को सहन करे।
239. (In that condition the ascetic should contemplate e thus-) these creatures are hurting my body (and not the virtues of my soul, such as knowledge). With these thoughts he should neither remove them nor shift himself elsewhere. (This way) distancing himself from influx of karmas (violence, etc.) and feeling satiated (as if with ambrosia) he should tolerate afflictions.
विवेचन-सूत्र २३१ से २३५ तक भक्त प्रत्याख्यान की पृष्ठभूमि रूप में संलेखना की विधि बतायी है तथा आगे के सूत्रों में भक्त प्रत्याख्यान की विधि है।
संलेखना-सम्यक् रूप से काय और कषाय का-लेखन (कृश) करना-संलेखना है। संलेखना दो प्रकार की होती है-बाह्य और आभ्यन्तर। आहार आदि का त्याग करना बाह्य संलेखना है तथा कषायों एवं कर्म आवरणों को क्षीण करना आभ्यन्तर संलेखना है। ___ काल की अपेक्षा से संलेखना तीन प्रकार की होती है-जघन्या, मध्यमा और उत्कृष्टा। जघन्या संलेखना १२ पक्ष की, मध्यमा १२ मास की और उत्कृष्टा १२ वर्ष की होती है। ___ बारह वर्षीय संलेखना की विधि-प्रथम चार वर्ष तक उपवास, बेला, तेला, चोला या पंचोला इस प्रकार विचित्र तप करे, पारणे के दिन उद्गमादि दोषों से रहित शुद्ध आहार ग्रहण करे। तत्पश्चात् फिर चार वर्ष तक उसी तरह विचित्र तप करे। पारणा के दिन विगयरहित (रसरहित) आहार ले। उसके बाद दो वर्ष तक एकान्तर तप करे, पारणा के दिन आयंबिल तप करे। ग्यारहवें वर्ष के प्रथम ६ मास तक उपवास या बेला, द्वितीय ६ मास में विकृष्ट तप-तेला-चोला आदि। पारणे में कुछ ऊनोदरीयुक्त आयंबिल किया जाता है। उसके पश्चात् १२वें वर्ष में कोटी-सहित लगातार आयंबिल करना होता है। पारणा के दिन आयंबिल किया जाता है। बारहवें वर्ष में साधक भोजन में प्रतिदिन एक-एक ग्रास को कम करते-करते एक सिक्थ भोजन पर आ जाता है। ____ बारहवें वर्ष के अन्त में वह अर्द्ध-मासिक या मासिक अनशन या भक्त प्रत्याख्यान आदि कर
लेता है। दिगम्बर परम्परा में भी आहार को क्रमशः कम करने के लिए उपवास, आयंबिल, विमोक्ष : अष्टम अध्ययन
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Vimoksha: Eight Chapter
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