Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 549
________________ तइओ उद्देसओ | तृतीय उद्देशक LESSON THREE उत्तम तितिक्षा साधना २९४. तणफासे सीयफासे य तेउफासे य दंस-मसगे य। अहियासए सया समिए फासाइं विरूवरूवाई॥४०॥ २९४. (लाढ़ देश में विहार करते समय भगवान को निम्न प्रकार के उपसर्ग हुए) घास-कंटकादि का कठोर चुभता स्पर्श, अत्यन्त शीत स्पर्श, भयंकर गर्मी का स्पर्श, डांस और मच्छरों का दंश; इन नाना प्रकार के दुःखदायी स्पर्शों को सतत सहन करते थे। LOFTY PRACTICE OF TOLERANCE 294. (While wandering in the Laadh country Bhagavan suffered following afflictions) piercing and harsh touch of grass and thorns, extremely cold touch, extremely hot touch, stinging touch of wasps and mosquitoes. He continuously tolerated varieties of such agonizing touch. २९५. अह दुच्चरलाढमचारी वज्जभूमिं च सुभभूमिं च। पंतं सेज्जं सेविंसु आसणगाइं चेव पंताई॥४१॥ __ २९५. लाढ़ देश के वज्र भूमि और शुभ्र भूमि नामक दुर्गम प्रदेश में भगवान ने विचरण किया था। वहाँ उन्होंने बहुत ही तुच्छ (कष्टप्रद) वास-स्थानों और कठिन आसनों का सेवन किया था। 295. Bhagavan wandered in the difficult terrain of Vajra area and Laadh area. There he used extremely miserable and difficult places of stay and seats. २९६. लाडेहिं तस्सुवसग्गा बहवे जाणवया लूसिंसु। अह लूहदेसिए भत्ते कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु णिवतिंसु॥४२॥ २९६. लाढ़ देश के क्षेत्र में भगवान ने अनेक उपसर्ग सहे। वहाँ के बहुत से अनार्य लोग भगवान पर डण्डों आदि से प्रहार करते थे; (उस देश के लोग ही रूखे थे, अतः) भोजन भी प्रायः रूखा-रूखा ही मिलता था। वहाँ के शिकारी कुत्ते उन पर टूट पड़ते और काट खाते थे। आचारांग सूत्र ( ४८८ ) Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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