Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 546
________________ २९३. मतिमान् कश्यपगोत्री महर्षि महावीर ने अप्रतिबद्धविहारी रहकर बहुत बार इस विधि का आचरण किया। __-ऐसा मैं कहता हूँ। 293. More often than not, the great and wise sage, Mahavir of the Kashyap clan, followed this code of conduct without any reservations. -So I say. विवेचन-पिछले सूत्रों में भगवान की संयम-साधना के विविध रूपों का दिग्दर्शन है। इस साधना को हम निम्न आठ अंगों में बाँट सकते हैं (१) शरीर-संयम, (२) अनुकूल-प्रतिकूल परीषह-उपसर्ग के समय मनःसंयम, (३) आहार-संयम, (४) वासस्थान-संयम, (५) इन्द्रिय-संयम, (६) निद्रा-संयम, (७) क्रिया-संयम, तथा (८) उपकरण-संयम। भगवान शरीर और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए (आहार, निद्रा, स्थान, आसन आदि के प्रति) पूर्णतः अनाग्रही थे। 'अपडिण्णे' अप्रतिज्ञ शब्द इसी बात को ध्वनित करता है। साधना के अनुकूल जैसा भी आचरण शक्य होता वे उसे स्वीकार लेते थे। भगवान की निद्रा-संयम की विधि भी बहुत ही अद्भुत थी। वे ध्यान के द्वारा निद्रा-संयम करते थे। निद्रा पर विजय पाने के लिए वे कभी खड़े हो जाते, कभी स्थान से बाहर जाकर टहलने लगते। इस प्रकार हर सम्भव उपाय से निद्रा पर विजय पाते थे। ___ वासस्थानों-शयनों में विभिन्न उपसर्ग-भगवान को साधनाकाल में वास-स्थानों में मुख्य रूप से निम्नोक्त उपसर्ग सहने पड़ते थे (१) संसप्पगा य जे पाणा-साँप और अन्य रेंगने वाले जन्तुओं आदि द्वारा काटा जाना। (२) पक्खिणो-गिद्ध आदि पक्षियों द्वारा माँस नोंचना। (३) चींटी, डाँस, मच्छर, मक्खी आदि का उपद्रव। (४) कुचरा-शून्य गृह में चोर या लंपट पुरुषों द्वारा सताया जाना। (५) सशस्त्र ग्राम-रक्षकों द्वारा सताया जाना। (६) अदुगामिया-कामासक्त स्त्री-पुरुषों का उपसर्ग। (७) जनशून्य स्थानों में अकेले दुराचारी लोगों द्वारा तंग करना। (८) उपवन के अन्दर की कोठरी आदि में घुसकर ध्यानावस्था में उत्पीड़न आदि। ( ४८५ ) Upadhan-Shrut : Ninth Chapter उपधान-श्रुत: नवम अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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