Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 539
________________ विविध प्रकार के उपसर्ग २८४. सयणेहिं तस्सुवसग्गा भीमा आसी अणेगरूवा य। संसप्पगा य जे पाणा अदुवा पक्खिणो उवचरंति॥३०॥ २८४. उन आवास-स्थानों में भगवान को अनेक प्रकार के भयंकर उपसर्ग सहने पड़ते थे। (जब वे ध्यान में स्थित होते तब) कभी साँप और नेवला आदि संसर्पक प्राणी काट खाते, कभी गिद्ध आदि पक्षी आकर माँस नोंचते। VARIOUS AFFLICTIONS 284. In the said places of stay Bhagavan had to suffer grave afflictions. When he was absorbed in meditation sometimes snakes and other crawling creatures bit him, sometimes vultures and other birds of prey pecked him. २८५. अदु कुचरा उवचरंति गामरक्खा य सत्तिहत्था य। अदु गामिया उवसग्गा इत्थी एगतिया पुरिसा य॥३१॥ २८५. अथवा कभी (शून्य गृह में ठहरते तो) उन्हें कुचर = चोर या व्यभिचारी पुरुष आकर तंग करते, अथवा कभी हाथ में शस्त्र लिए हुए ग्रामरक्षक या कोतवाल उन्हें कष्ट देते, कभी कामासक्त स्त्रियाँ और कभी पुरुषों द्वारा भी उपसर्ग किये जाते थे। 285. Also (when he stayed at some abandoned house) sometimes thieves or debauches tried to disturb him, sometimes guards or soldiers with weapons in their hands goaded him, and sometimes he was tormented by lecherous women and even men. विवेचनसाधनाकाल में होने वाले उपसर्गों के विषय में इन सूत्रों में बताया है-भगवान जब शून्य गृहों में ध्यानस्थ खड़े रहते तो वहाँ कुचर अर्थात् दुराचारी लोग-जैसे चोर अथवा व्यभिचारी पुरुष आकर उन्हें अपना विघ्नकारक समझकर कष्ट व पीड़ा देते। कभी चोरों आदि को पकड़ने आये कोतवाल आदि उन्हें ढोंगी समझकर पीटते। कभी कामाकुल स्त्रियाँ उन्हें सताती और फिर पुरुष लोग कष्ट देते। यहाँ ग्राम्य उपसर्ग का अर्थ करते हुए चूर्णिकार ने कहा है ग्राम्य अर्थात् इन्द्रिय-विषय। काम-सम्बन्धी उपसर्ग। भगवान का अतीव सुन्दर रमणीय रूप देखकर स्त्रियाँ मोहित हो जाती तथा उनके प्रति कामाकुल हो उठतीं। रात्रि में जहाँ भगवान एकान्त ध्यान करते वहाँ आकर उन्हें विचलित करने का प्रयत्न करतीं। भगवान का ध्यान भंग नहीं होता तब रुष्ट रमणियाँ उन्हें गालियाँ देतीं। इस बात का पता उनके पतियों को लगता, तब वे क्रुद्ध होकर आचारांग सूत्र ( 860) Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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