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२२८. (१) जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता है कि “मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य लाकर दूंगा और उनका लाया हुआ आहार स्वीकार करूँगा।"
(२) जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता है कि “मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन आदि चारों प्रकार का आहार लाकर दूंगा, लेकिन उनका लाया हुआ आहारादि स्वीकार नहीं करूँगा।"
(३) जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता है कि “मैं दूसरे भिक्षुओं को अशनादि लाकर नहीं दूंगा, लेकिन उनका लाया हुआ आहारादि स्वीकार करूँगा।"
(४) जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता है कि "मैं दूसरे भिक्षुओं को अशनादि लाकर नहीं दूंगा और न ही उनके द्वारा लाया हुआ आहारादि ग्रहण करूँगा।"
(५) (अभिग्रहधारी भिक्षु का संकल्प) “मैं अपनी आवश्यकता के अतिरिक्त (शेष) अपनी कल्प मर्यादानुसार एषणीय एवं ग्रहणीय तथा अपने लिए लाये हुए अशन आदि में से निर्जरा के उद्देश्य से, परस्पर उपकार करने की भावना से साधर्मिक मुनियों की सेवा करूँगा (या) मैं भी उन साधर्मिक मुनियों द्वारा अपनी आवश्यकता से अधिक, अपनी कल्प मर्यादानुसार एषणीय-ग्रहणीय तथा स्वयं के लिये लाए हुए अशन आदि में से निर्जरा के उद्देश्य से उनके द्वारा की जाने वाली सेवा का अनुमोदन करूँगा।"
कर्मों का लाघव चाहता हुआ वह भिक्षु (वैयावृत्य और काय-क्लेश) तप के लाभ से अनायास ही लाभित होता है। भगवान ने जिस प्रकार से सेवा के कल्प का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जान-समझकर सब प्रकार से सर्वात्मना समत्व का आचरण करे। SPECIAL RESOLUTION AND SERVICE TO OTHERS
228. (1) An ascetic may have resolved-_“I will bring food (etc.) for other ascetics and also accept food (etc.) brought by them."
(2) (or) An ascetic may have resolved—“I will bring food (etc.) for other ascetics but will not accept food (etc.) brought by them."
(3) (or) An ascetic may have resolved—“I will not bring food (etc.) for other ascetics but will accept food (etc.) brought by them."
(4) (or) An ascetic may have resolved—“Neither will I bring food (etc.) for other ascetics nor will I accept food (etc.) brought by them.” विमोक्ष : अष्टम अध्ययन
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Vimoksha: Eight Chapter
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