Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 487
________________ (3) I will not bring food for others but will accept that brought by them. (4). Neither will I bring food for others nor will I accept that brought by them. (5) For shedding of karmas and promoting mutual co-operation I will serve my co-religionist by offering them food in excess of my needs from what I brought in accordance with the code of almsbegging. (6) With the same view, I will accept their services. According to the commentator (Churni) these are pratimas (special austerities) and abhigrahas (special resolutions). संलेखना-पादोपगमन अनशन २२९. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ ‘से गिलामि च खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेणं परिवहित्तए, से अणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेज्जा, अणुपुव्वेणं आहारं संवद्र्त्ता कसाए पयणुए किच्चा समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू अभिणिव्वुडच्चे। अणुपविसित्ता गाम वा जाव रायहाणिं वा तणाइं जाएज्जा, तणाई जाएत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे जाव तणाइं संथरेज्जा, (तणाई संथरेत्ता) एत्थ वि समए कायं च जोगं च इरियं च पच्चक्खाएज्जा। - तं सच्चं सच्चवादी ओए तिण्णे छिण्णकहकहे आतीतढे अणातीते चेच्चाण भेउरंकायं संविहुणिय विरूवरूवे परीसहुवसग्गे अस्सिं विसंभणताए भेरवमणुचिण्णे। तत्थावि तस्स काल-परियाए। से तत्थ वियंतिकारए। इच्चेयं विमोहायतणं हियं सुहं खमं णिस्सेसं आणुगामियं। त्ति बेमि। ॥ सत्तमो उद्देसओ सम्मत्तो ॥ २२९. जिस भिक्षु को (रोगों से आक्रान्त होने के कारण) यह संकल्प होता है कि मैं इस समय इस शरीर से संयमोचित क्रियाएँ करने में असमर्थ हो रहा हूँ। तब वह भिक्षु क्रमशः आहार का संक्षेप करे। आहार को क्रमशः घटाता हुआ कषायों को भी कृश करे। समाधिपूर्ण लेश्या-(शान्त अन्तःकरण वृत्ति) वाला, तथा शरीर और कषाय, दोनों ओर से फलक की तरह कृश बना हुआ वह भिक्षु समाधिमरण के लिए उत्थित होकर शरीर को स्थिर करे। आचारांग सूत्र ( ४३२ ) Hlustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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