Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 354
________________ १०GO * * P 4800 IGYAone १७७. (व्याख्यात-रत-) मोक्ष-मार्ग में स्थित मुनि जन्म-मरण के वृत्त (चक्राकार) मार्ग को पार कर जाता है। (उस मुक्तात्मा का स्वरूप या सुख बताने के लिए) सभी स्वर समाप्त हो जाते हैं-(मुक्त आत्मा का स्वरूप शब्दों के द्वारा बताया नहीं जा सकता), तर्क द्वारा भी समझाया नहीं जा सकता है। मति (मनन रूप) भी उसे पकड़ नहीं पाती। वहाँ वह कर्ममल से रहित ओजरूप (ज्योति स्वरूप है) शरीर रूप प्रतिष्ठान आधार से रहित (अशरीरी) और क्षेत्रज्ञ-चैतन्य स्वरूप है। __वह (शुद्ध सिद्ध आत्मा ) न दीर्घ है, न ह्रस्व है। न वृत्त है, न त्रिकोण है, न चतुष्कोण है, और न परिमण्डल (गोल चूड़ी आकार) है। वह न कृष्ण (काला) है, न नीला है, न लाल है, न पीला है और न शुक्ल है। न वह सुगन्धयुक्त है और न दुर्गन्धयुक्त। वह न तिक्त है, न कड़वा है, न कसैला है, न खट्टा है और न मीठा है। वह न कर्कश है, न मृदु (कोमल) है। न गुरु (भारी) है, न लघु (हलका) है। न ठण्डा है, न गर्म है, न चिकना है, और न रूखा है। वह (मुक्तात्मा) कायवान् (शरीरयुक्त) नहीं है, वह जन्मधर्मा नहीं है, वह संगरहित है, वह न स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक है। ___ वह परिज्ञ (सम्पूर्ण ज्ञाता) है, संज्ञा-(सभी पदार्थों को सम्यक् जानता) है। (अर्थात् सर्वतः चैतन्यमय है) (उसका बोध कराने के लिए) कोई उपमा नहीं है। वह अरूपी (अमूर्त) सत्ता है। वह पदातीत (अपद) है, उसका बोध कराने के लिए कोई पद नहीं है। वह न शब्द है, न रूप है, न गन्ध है, न रस है और न स्पर्श है। बस, इतना ही है। ___-ऐसा मैं कहता हूँ। 9 THE FORM OF LIBERATED SOUL __177. The ascetic stable (engrossed) in the path of liberation crosses the vicious circle of life and death (rebirth). All vowels (and consonants) fail (to explain the form or bliss of that liberated soul). It cannot be explained by logic. Even intellect cannot grasp it. There it is in the form of aura not tarnished by the dirt of karmas. It is devoid of any foundation in the form of body. And it is knower of every field; in other words the embodiment of pure knowledge. लोकसार : पंचम अध्ययन ( ३०१ ) Lokasara : Fifth Chapter dalRDRODRUARY QOYO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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