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‘एवं खु मुणी आयाणं'-यह वाक्य अर्थ की दृष्टि से बहुत ही गम्भीर है। वृत्तिकार ने 'आदान' शब्द के दो अर्थ किये हैं जो ग्रहण किया जाय, उसे आदान कहते हैं, वह है कर्म या वस्त्र आदि।
'आदान' शब्द का एक अर्थ ज्ञानादि भी है, जो तीर्थंकरों की ओर से विशेष रूप से सर्वतोमुखी दान है। ____ 'आदान' शब्द का अर्थ कर्म या वस्त्रादि उपकरण करने पर अर्थ होगा विधूतकल्प मुनि-कर्म . या कर्मों के उपादान रूप वस्त्रादि का सदा परित्याग करे। ___णिज्झोसइत्ता का अर्थ है जो कुछ परीषहादि सहन, स्वजन-त्याग आदि के विषय में पहले
कहा है, उस उपदेश या वचन का पालन या स्पर्शन करे। ____ 'जे अचेले परिवुसिते'-'अचेल' शब्द के दो अर्थ मुख्य होते हैं-अवस्त्र और अल्पवस्त्र। जैसे. अज्ञ का अर्थ अल्पज्ञ होता है न कि ज्ञान-शून्य, वैसे ही यहाँ 'अचेल' का अर्थ अल्पचेल (अल्प वस्त्र वाला) समझना चाहिए। (आचा. शीला. टीका, पत्रांक २२१) अप्रत्यय का अर्थ दोनों प्रकार का होता है-निषेधार्थक और अल्पार्थक। निषेधार्थक 'अचेल' शब्द निर्वस्त्र रहकर साधना करने वाले जिनकल्पी मुनि का विशेषण है और अल्पार्थक 'अचेल' शब्द स्थविरकल्पी मुनि के लिए प्रयुक्त होता है। दोनों प्रकार के मुनियों को कुछ धर्मोपकरण रखने पड़ते हैं। वनों में निर्वस्त्र रहकर साधना करने वाले जिनकल्पी मुनियों के लिए शास्त्र में मुखवस्त्रिका और रजोहरण ये दो उपकरण ही बताये हैं। स्थविरकल्पी मुनियों के लिए वस्त्र के विषय में एक, दो या तीन की भिन्न-भिन्न मर्यादाएँ हैं। किन्तु दोनों कोटि के मुनियों को वस्त्रादि उपकरण रखते हुए भी उनके सम्बन्ध में विशेष चिन्ता, आसक्ति या उनके वियोग में आर्तध्यान या उद्विग्नता नहीं होनी चाहिए। कदाचित् वस्त्र फट जाय या समय पर शुद्ध ऐषणिक वस्त्र न मिले, तो भी उसके लिए आर्तध्यान-रौद्रध्यान नहीं होना चाहिए। ___ 'लाघवं' का अर्थ है-लघु भाव। वह दो प्रकार का है-उपकरणों की अल्पता-उपकरण लाघव। कषाय अविनय आदि का त्याग भाव लाघव है।
समत्त-यह है कि उपकरण-लाघव आदि में भी समभाव रहे, दूसरे साधकों के पास अपने से न्यूनाधिक उपकरणादि देखकर उनके प्रति घृणा, द्वेष, प्रतिस्पर्धा, अवज्ञा आदि मन में न आवे, यही समत्व को सम्यक् जानना है। शीलांक टीका में बताया गया है
जोऽवि दुवत्थ तिवत्थो एगेण अचेलगो व संथरइ। म हु ते हीलंति परं, सव्वेऽपि य ते जिणाणाए॥१॥ जे खलु विसरिसकप्पा संघयणधिइआदि कारणं पप्प। णऽव मन्नइ, ण य हीणं अप्पाणं मन्नई तेहिं ॥२॥ सव्वेऽवि जिणाणाए जहाविहिं कम्म-खणण-अट्ठाए।
विहरंति उज्जया खलु, सम्मं अभिजाणई एवं ॥३॥ आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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