Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 412
________________ * धुतवादी (कर्मक्षयार्थी) मुनि को, समाधि और संयमनिष्ठा भंग न करते हुए समभावपूर्वक उन्हें * सहना चाहिए; क्योंकि शान्ति आदि दशविध, मुनिधर्म में सुस्थिर रहने वाला मुनि ही दूसरों को * धर्मोपदेश द्वारा सन्मार्ग बता सकता है। ___ 'फासा' शब्द सर्दी-गर्मी दंश-मशक आदि परीषह सूचित किये हैं। ___ 'ओए समियदंसणे'-ओज का अर्थ वृत्तिकार ने किया है-अकेला; राग-द्वेषरहित होने से * अकेला। समित-दर्शन पद के तीन अर्थ होते हैं-(१) जिसका दर्शन समित-सम्यक् हो वह * सम्यग्दृष्टि, (२) जिसका दर्शन (दृष्टि) शमित-उपशान्त हो गया हो वह शमित-दर्शन, और (३) जिसकी दृष्टि समता को प्राप्त कर चुकी है वह समित-दर्शन-समदृष्टि। ___ आगम के पाठानुसार वृत्तिकार धर्म श्रोता के लक्षण बताते हैं। सिद्धान्त का ज्ञाता मुनि यह देखे कि जो भाव से उत्थित; संयम-पालन के लिए उद्यत हैं, उन्हें, अथवा अनुत्थित-श्रावकों आदि को, धर्म-श्रवण के जिज्ञासुओं को धर्म का व्याख्यान करे। 'संति' आदि आठ पदों से जिस धर्म का कथन करना है उसका स्वरूप बताया है। (१) शान्ति-अहिंसा, (२) विरति-आम्रवों से विरमण, (३) उपशम-क्रोधादि कषायों के निग्रह का मार्ग, (४) निर्वाण-आत्मा के सहज आनन्द की प्राप्ति का उपाय अथवा चित्त को स्थिरता का उपाय, (५) शौच-निर्लोभता, (६) आर्जव-सरलता, (७) मार्दव-अहंकार-त्याग और (८) लाघव-वस्त्र आदि उपकरणों की अल्पता व मन की नम्रता। ___ 'अणइवत्तियं' शब्द से अभिप्राय है-जिस धर्म-कथन से भगवद् आज्ञा का अति व्रजनॐ अतिक्रमण न हो, अर्थात् आगमानुसार सम्यक् कथन करें। __इस सूत्र में 'अणुवीई' शब्द दो बार आया है। इसका अभिप्राय है, धर्म-कथन करने से पूर्व बार-बार विचार व विवेक करें। ___विभए', 'विचारपूर्वक' या 'विभागपूर्वक' का पहला अभिप्राय है आक्षेपणी, विक्षेपणी आदि कथा शैली से धर्म-तत्त्व को अलग-अलग प्रकार से समझाए। दूसरी बार 'अणुवीइ' के प्रयोग के ॐ साथ दूसरों की व अपनी आशातना नहीं करने का भी संकेत है। आशातना का अर्थ है, किसी * को बाधा, हानि या कष्ट पहुँचाना। द्रव्य आशातना-शरीर, उपकरण अन्न-पानी की है। भाव * आशातना का अर्थ है ज्ञान-दर्शन-चारित्र की हानि न हो। धर्म का कथन करते समय, देश, काल की परिस्थिति, श्रोता की पात्रता व उसकी श्रद्धा * आदि सभी बातों का विचार कर ले। कहीं श्रोता का मन दुःखी न हो तथा वह खिन्न व क्रुद्ध * होकर उल्टा धर्म-कथन करने वाले को हानि नहीं पहुँचाए। Elaboration-Loosaga bhavanti—The word looshak has been * used in Agams in different contexts meaning-violent; tormentor; destroyer; cruel; killer; annoyer; adulterer; disobedient; antagonist; धुत : छठा अध्ययन ( ३५७ ) Dhut: Sixth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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