________________
.99.99.99.99
१८३. ( सम्बुद्ध होने पर) संयम में पराक्रम करते हुए उस मुनि के माता-पिता आदि विलाप करते हुए यों कहते हैं- “तुम हमें मत छोड़ो, हम तुम्हारी इच्छा के अनुसार चलेंगे। तुम पर हमें ममत्व है ।" इस प्रकार आक्रन्द करते हुए वे रुदन करते हैं।
स्वजन विलाप करते हुए कहते हैं - " ऐसा व्यक्ति न तो मुनि हो सकता और न ही संसार सागर को पार कर सकता है ' जिसने माता-पिता को छोड़ दिया है।'
( स्वजनों का क्रन्दन सुनकर ) वह मुनि उनकी शरण में नहीं जाता। वह तत्त्वज्ञ भला कैसे उस (गृहवास) में रमण कर सकता है ?
इस (पूर्वोक्त) ज्ञान का मुनि सदा अनुपालन करें।
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
ABANDONING THE FAMILY
183. While pursuing the path of discipline (when he gets enlightened), his parents (and other members of the family) cry and beseech, “Do not abandon us. We will do as you say. We love you." They wail and cry again.
The family members also cry and warn, "A person who abandons his parents can neither become an ascetic nor cross the ocean of the world."
That ascetic (on hearing the wailing of his kin) does not seek refuge with them. How can that sage (who has understood fundamentals) live with them (as a householder) ?
An ascetic should always abide by this (preceding) knowledge.
-So I say.
विवेचन-स्वजनों का परित्याग करते हुए मुनि को वापस गृहवास में खींचने के लिए स्वजन जो करुण-विलाप करते हैं उसका वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं - ज्ञानी पुरुष, जिसने आत्म- अनुसंधान व आत्म-रमण का संकल्प कर लिया है, वह उन स्वजनों के करुण- रुदन से चलित नहीं होता - "सरणं तत्थ नो समेति । " - वह वापस उनका आश्रय नहीं लेता |
शास्त्रकार स्वजन - परित्याग रूप धूतवाद में अविचल रहने वाले महामुनि के विषय में कहते हैं - वह 'अतारिसे मुणी ओहं तर ' 'अनन्यसदृश - ( अद्वितीय) मुनि संसार - सागर से उत्तीर्ण हो
आचारांग सूत्र
( ३२० )
Illustrated Acharanga Sutra
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org