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शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध आदि मोहक विषयों के प्रति चित्त की प्रसन्नता/रुचि, आकर्षण तथा कामेच्छा को रति कहा गया है। ___ यहाँ एक ही सूत्र में 'वीर' शब्द चार बार आने का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए आचार्य श्री
आत्माराम जी म. ने लिखा है-“साधना में अरति का त्याग, असंयम में रति का त्याग, मन की चंचलता का त्याग तथा शब्दादि विषयों में आसक्ति का त्याग इन चार प्रयोजनों को सूचित करने के लिए चार बार 'वीर' शब्द आया है।" ____ मोणं-मौन के दो अर्थ किये जाते हैं, मौन-मुनि का भाव-संयम, अथवा मुनि जीवन का मूल आधार ज्ञान।
धुणे कम्मसरीरगं-कर्म शरीर को धुनने का तात्पर्य है ध्यान आदि द्वारा आठ प्रकार के कर्मों को क्षीण करें। क्योंकि इस औदारिक शरीर को धुनने से, क्षीण करने से तब तक कोई लाभ नहीं, जब तक राग-द्वेषजनित कर्म (कार्मण) शरीर को क्षीण नहीं किया जाये। आगमों व टीका ग्रन्थों में मुख्य रूप में कर्म शरीर धुनने का ही निर्देश है। कहीं-कहीं प्रसंगानुसार तप के प्रकरण में औदारिक शरीर को धनना तथा ध्यान के प्रसंग में कर्म शरीर को धनना मख्य होता है। यह
औदारिक शरीर तो साधना के लिए साधन मात्र है। हाँ, संयम के साधनभूत शरीर के नाम पर वह इसके प्रति ममत्व भी न लाये, सरस-मधुर आहार से इसकी वृद्धि भी न करे, इस बात का स्पष्ट निर्देश करते हुए कहा है-“पंतं लूहं सेवंति।" वह साधक शरीर से धर्म-साधना करने के लिए रूखा-सूखा, यथाप्राप्त भोजन का सेवन करे। यहाँ खाद्य संयम व तप के द्वारा औदारिक शरीर को कृश करने का संकेत है। __ अनेक प्रतियों में समत्तदंसिणो के स्थान पर सम्मत्तदंसिणो पाठ भी उपलब्ध है। टीकाकार शीलांकाचार्य ने इसका पहला अर्थ 'समत्वदर्शी' तथा दूसरा अर्थ 'सम्यक्त्वदर्शी' किया है। यहाँ नीररा भोजन के प्रति ‘समभाव' का प्रसंग होने से 'समत्वदर्शी' अर्थ अधिक उपयुक्त लगता है।
Elaboration—It is the weakness concealed within the human mind in the form of affinity for mundane pleasures that is called rati (indulgence) and arati (non-indulgence). Arati means the lack of desire or dislike for spiritual activities like practicing ascetic discipline, austerities, service and self study. Such apathy is detrimental to practices of ascetic discipline.
The liking and attraction for sources of sensual pleasure such as sound, touch, form, taste and smell and libido is called rati.
Explaining the purpose of quadruple recurrence of the word 'vir' Acharya Shri Atmaram ji M. has written—"Abandoning apathy for practices, abandoning affinity with indiscipline, abandoning fickleness of mind and abandoning attachment for mundane आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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