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'महायान' का एक अर्थ - विशाल पथ अथवा 'राजमार्ग' भी हो सकता है। संयम का पथराजमार्ग है जिस पर सभी कोई निर्भय होकर चल सकते हैं।
'परेण परं जंति' का तात्पर्य है आध्यात्मिक दृष्टि से आगे से आगे बढ़ना । वृत्तिकार ने इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है- सम्यग्दर्शन प्राप्त करने से नरक-तिर्यंचगतियों में भ्रमण रुक जाता है, साधक सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र का यथाशक्ति पालन करके आयुष्य क्षय होने पर सौधर्मादि देवलोकों में जाता है। पुण्य शेष होने से वहाँ से मनुष्यलोक में कर्मभूमि, आर्यक्षेत्र, सुकुलजन्म, मनुष्यगति तथा संयम आदि पाकर विशिष्टतर अनुत्तर देवलोक तक पहुँच जाता है। फिर वहाँ से च्यवकर मनुष्य जन्म तथा उक्त उत्तम संयोग प्राप्त कर उत्कृष्ट संयम पालन करके समस्त कर्मक्षय करके मोक्ष प्राप्त कर लेता है । इस प्रकार पर अर्थात् संयमादि के पालन से पर अर्थात् स्वर्ग-परम्परा से अपवर्ग - मोक्ष भी प्राप्त कर लेता है। अथवा पर = सम्यग्दृष्टि गुणस्थान से उत्तरोत्तर आगे बढ़ते-बढ़ते साधक अयोगीकेवली (१४वाँ ) गुणस्थान तक पहुँच जाता है।
‘परेण परं’ से एक अर्थ यह भी ध्वनित होता है कि वह क्रमशः उत्तरोत्तर सुख, तेज-धुति को प्राप्त होता है । भगवतीसूत्र (१४) में बताया है - एक मास की दीक्षा - पर्याय वाला श्रमण व्यन्तर देवों की तेजस्विता व सुखों से आगे बढ़ जाता है। क्रमशः भवनपति, असुरकुमार, ज्योतिषी देवों की तेज धुति आदि का अतिक्रमण कर छह मास की दीक्षा - पर्याय वाला सौधर्म व ईशान देवलोक की तेजोद्युति का अतिक्रमण करता है। बारह मास की दीक्षा- पर्याय वाला श्रमण अनुत्तर विमानवासी देवों के सुख-तेज आदि का भी अतिक्रमण कर जाता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर विशुद्ध तेजोलेश्या की प्राप्ति होती रहती है ।
‘एगं विगिंचमाणे’- इस सूत्र का आशय यह है कि क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ उत्कृष्ट साधक एक अनन्तानुबन्धी कषाय का क्षय करता हुआ, अन्य दर्शनावरण आदि का भी क्षय कर लेता है। आयुष्यकर्म बँध भी गया हो तो भी दर्शनसप्तक का क्षय कर लेता है । (पृथक् ) - अन्य का क्षय करता हुआ एक अनन्तानुबन्धी नामक कषाय का भी क्षय कर देता है।
Elaboration — Egam janai. -This sentence conveys that a highly learned seeker who completely knows one ultimate particle of matter and its past or future transformations (paryaya) with reference to its own and outside factors, comes to know all the substances and every transformation with reference to own and outside factors. This is because without the knowledge of all substances the knowledge of one substance with all its past and future transformations cannot be gained. In the same way one who knows all the things in this world knows any one thing with all its past and future transformations.
आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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