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Knowing the misery of the world (giving up passions for that), the brave seekers renounce the affiliations (fondness and relationship) and proceed on the great journey (the path of liberation).
They progressively move towards purity and are left with no desire for life of indiscipline.
He who severs (by winning ) one (extreme passion), severs others as well; and he who severs others, severs one also.
He who has faith in the tenets of the absolutely detached is a sage.
The seeker who, understanding the world according to the tenets of Jineshvar (Tirthankar), renounces (the mundane pleasures) becomes free of all fear from anywhere.
Weapons (indiscipline ) have degrees of sharpness, but nonweapon (discipline ) has no degrees.
विवेचन-‘एगं जाणइ.' इस वाक्य का तात्पर्य यह है कि जो विशिष्ट ज्ञानी एक परमाणु आदि द्रव्य तथा उसके किसी एक भूत-भविष्यत् पर्याय अथवा स्व या पर-पर्याय को पूर्ण रूप से जानता है, वह समस्त द्रव्यों एवं स्व-पर-पर्यायों को जान लेता है; क्योंकि समस्त वस्तुओं के ज्ञान के बिना अतीत- अनागत पर्यायों सहित एक द्रव्य का पूर्ण ज्ञान नहीं हो सकता। इसी प्रकार जो संसार की सभी वस्तुओं को जानता है, वह किसी एक वस्तु को भी उसके अतीत अनागत पर्यायों सहित पूर्ण रूप में जानता है।
यही तथ्य इस श्लोक में प्रकट किया गया है
“एकोभावः सर्वथा येन दृष्टः, सर्वे भावाः सर्वथा तेन दृष्टा । सर्वे भावाः सर्वथा येन दृष्टा, एकोभावः सर्वथा तेन दृष्टः॥"
प्रसंगानुसार यहाँ पर कषाय तथा आस्रव का कथन होने से ऐसा भी अर्थ किया जाता है - जो एक आस्रव या एक क्रोध को सम्पूर्ण रूप में जान लेता है वह सभी को जान लेता है तथा जो आसव को जान लेता है वह संवर को भी जान लेता है ।
'जे एगं णामे . ' - इस सूत्र का आशय है - ( १ ) जो एक अनन्तानुबन्धी क्रोध को नमा देता है - क्षय कर देता है, वह बहुत से मान आदि अनन्तानुबन्धी को नमा- खपा देता है, अथवा अपने ही अन्तर्गत अप्रत्याख्यानी आदि कषायों को नमा- खपा देता है । ( २ ) जो एक मोहनीय कर्म को नमा देता है - क्षय कर देता है, वह शेष कर्म प्रकृतियों को भी नमा-खपा देता है।
शीतोष्णीय : तृतीय अध्ययन
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Sheetoshniya: Third Chapter
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