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पढमो उद्देसओ
प्रथम उद्देशक
सुप्त-जाग्रत
१०७. सुत्ता अमुणी मुणिणो सया जागरति ।
लोगंसि जाण अहियाय दुक्खं ।
समयं लोगस्स जाणित्ता एत्थ सत्थोवरए ।
१०७. अमुनि - ( अज्ञानी) सोते हैं, मुनि - ( ज्ञानी) सदैव जागते रहते हैं ।
इस बात को तुम जानो कि लोक में मोह और दुःख अहित का कारण है।
लोक में संयम अनुष्ठान ( एवं समभाव को श्रेष्ठ ) जानकर (संयमी पुरुष ) जो शस्त्र हैं, उनसे निवृत्त रहें ।
THE SLEPT AND THE AWAKENED
107. The ignorant sleep, the wise (sages) are ever awake.
Know this that in this world attachment and misery are causes of harm.
LESSON ONE
Knowing that (for) the practice of discipline (and feeling of equality to be beneficial) one (disciplined person) should abstain from use of weapons in this world.
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विवेचन- जिन्होंने मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और अशुभयोग रूप भाव-निद्रा का त्याग कर दिया है, जिन्हें सम्यकुबोध प्राप्त है और मोक्ष मार्ग से स्खलित नहीं होते, वे मुनि हैं। इसके विपरीत जो मिथ्यात्व, अज्ञान आदि से ग्रस्त हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, वे 'अमुनि' - अज्ञानी हैं। भाव - निद्रा की प्रधानता से यहाँ अज्ञानी को सुप्त और ज्ञानी को जागृत कहा गया है।
सुप्त दो प्रकार के हैं - द्रव्य-सुप्त और भाव -सुप्त । निद्रा के अधीन व्यक्ति द्रव्य-सुप्त है। जो मिथ्यात्व, अज्ञान आदि महानिद्रा से व्यामोहित हैं, वे भाव -सुप्त हैं अर्थात् जो आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से शून्य, हैं, मिथ्यादृष्टि, असंयमी और अज्ञानी हैं, वे जागते हुए भी भाव से, आन्तरिक दृष्टि से सोये हैं ।
जो कुछ सोये हैं, कुछ जागृत हैं, वे देशविरत श्रावक सुप्त जागृत हैं और जो उत्कृष्ट संयमी और ज्ञानी हैं, वे जागृत हैं।
आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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