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आचार्य शीलांक ने उदाहरण देते हुए इसकी व्याख्या की है
अर्थ-लोभी व्यक्ति सोने के समय में सो नहीं पाता। स्नान के समय में स्नान नहीं कर पाता। भोजन के समय भोजन भी नहीं कर पाता। रात-दिन उसके सिर पर धन का भूत चढ़ा रहता है। वह अपने आप को भूल-सा जाता है। यहाँ तक कि 'मृत्यु' जैसी अवश्यंभावी स्थिति को भी विस्मृत-सा कर देता है।
एक बार राजगृह में 'धन' नाम का सार्थवाह आया। वह दिन-रात धनोपार्जन में ही लीन रहता । उसकी विशाल समृद्धि की चर्चा सुनकर 'मगधसेना' नाम की गणिका उसके आवास पर गई। सार्थवाह अपने आय-व्यय का हिसाब जोड़ने और स्वर्ण मुद्राएँ गिनने में इतना दत्तचित्त था कि उसने द्वार पर खड़ी सुन्दरी गणिका की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखा ।
मगधसेना का अहंकार तिलमिला उठा। दाँत पीसती हुई उदास मुख लिए वह सम्राट् जरासंध के दरबार में गई । जरासंध ने पूछा- “सुन्दरी ! तुम उदास क्यों हो ? किसने तुम्हारा अपमान किया ?" मगधसेना ने व्यंग्यपूर्वक कहा - " उस अमर ने !”
“कौन अमर ?” – जरासंध ने विस्मयपूर्वक पूछा ।
" धन सार्थवाह ! वह धन की चिन्ता में, स्वर्ण मुद्राओं की गणना में इतना बेभान है कि उसे मेरे पहुँचने का भी भान नहीं हुआ। जब वह मुझे भी नहीं देख पाता, तो वह अपनी मृत्यु को कैसे देखेगा? वह स्वयं को अमर जैसा समझता है। "
शास्त्रकार ने कहा है- भोग एवं अर्थ में अत्यन्त आसक्त पुरुष स्वयं को अमर की भाँति मानने लगता है और इस घोर आसक्ति का परिणाम आता है - आर्त्तता - पीड़ा, अशान्ति और क्रन्दन । पहले भोग-प्राप्ति की आकांक्षा में क्रन्दन करता है, फिर भोग छूटने के शोक ( वियोग चिन्ता) में क्रन्दन करता है।
'बहुमायी' शब्द के द्वारा बताया है-अव्यवस्थित चित्त वाला पुरुष कभी माया, कभी क्रोध, कभी अहंकार और कभी लोभ करता रहता है। वह विक्षिप्त- पागल की तरह आचरण करने लगता है।
Elaboration-Kaasamkaase' means ambiguity. This term has been used to convey the attitude of a day-dreamer. Such procrastinator is caught in the indecisive attitude-"I have done this, I have yet to do this." and is busy framing conspiracies and inflaming animosity. He is so obsessed with life that in spite of seeing others die he considers himself to be immortal.
Acharya Sheelank has elaborated this giving an example
A man having greed for wealth cannot sleep at bed-time. He can neither bathe nor eat at the proper time. Day and night he is plagued by the ghost of wealth. He becomes a lost man. So much so that he even fails to recognize an inevitable consequence like death.
आचारांग सूत्र
( १३० )
Illustrated Acharanga Sutra
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