________________
.99.9090 10 COD 10.910 10 10 10 10. D. Di DDC 91.91090
are not fulfilled or he is deprived of the means), he deplores and he sheds tears or gets emaciated. With pain and misery he continues to grieve.
92. This farsighted man sees the world. He knows the lower part (the nether world ), the higher part (the heavens) and the transverse part (the middle world). He also knows that an obsessed (with carnal desires) person continues to drift again and again in this world (or in pursuit of mundane pleasures).
Know (and get detached) about the link (fate of the mortal body) holding the humans here (in this world).
That brave is worthy of praise who liberates the fettered (with carnal desires ).
विवेचन- इन दो सूत्रों में काम-भोग की कटुता बताकर उससे चित्त को विरक्त करने के उपाय बताये गये हैं । काम दो प्रकार का है
१. इच्छा-काम- आशा, तृष्णा, रतिरूप। यह मोहनीय कर्म के उदय से हास्य, रति आदि कारणों से उत्पन्न होता है।
२. वासना या विकाररूप कामेच्छा - उदय से प्रकट होता है।
-मदन- काम है। यह मोहनीय कर्म के भेद-वेद त्रय के
काम संज्ञा चिर संचित संस्कारों का परिणाम होने से उसका निवारण कष्ट साध्य हैदुरतिक्रम है | जो 'काम' के दुष्परिणाम को नहीं जानता, वह उससे विरक्त नहीं हो सकता । इसलिए प्रस्तुत दो सूत्रों में काम-विरक्ति के पाँच आलम्बन बताये हैं। जैसे
(१) जीवन की क्षण-भंगुरता का विचार करना । जीवियं दुप्पडिबूहगं- आयुष्य प्रतिक्षण घटता जा रहा है और इसको स्थिर रखना या बढ़ा लेना किसी के वश का नहीं है।
( २ ) से सोयइ - कामी को होने वाले अनेक प्रकार के मानसिक, शारीरिक परिताप, पीड़ा, एवं शोक आदि को समझना ।
(३) लोक दर्शन - इस शब्द पर तीन दृष्टियों से विचार किया जा सकता है
(क) लोक का अधोभाग देखना - अधोभागवर्ती नैरयिक विषय कषाय से आसक्त होकर शोक-पीड़ा आदि से दुःखी हो रहे हैं। लोक का ऊर्ध्व भाग (देव) तथा मध्य भाग ( मनुष्य एवं तिर्यंच) भी विषय - कषाय में आसक्त होकर शोक व पीड़ा से दुःखी है।
आचारांग सूत्र
( १२२ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
Illustrated Acharanga Sutra
www.jainelibrary.org