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life. The basic cause of violence is attachment. If there is no attachment these attributes existing in various areas and direction can cause no harm to soul.
वनस्पतिकाय - हिंसा - वर्जन
४३. लज्जमाणा पुढो पास। 'अणगारा मो' त्ति एगे पवयमाणा । जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्सइसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति ।
४४. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता - इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणण-पूयणाए जाई - मरण - मोयणाए दुक्खपडिघायहेउं । से सयमेव वणस्सइसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा वणस्सइसत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा वणस्सइसत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ ।
तं से अहियाए, तं से अबोहीए।
४३. तू देख ! प्रत्येक संयमी हिंसा से विरत रहता है।
'हम गृहत्यागी हैं' यह कहते हुए भी कुछ लोग विविध प्रकार के शस्त्रों से, वनस्पतिकायिक जीवों का समारंभ करते हैं । वनस्पतिकाय की हिंसा करते हुए वे अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करते हैं।
४४. इस विषय में भगवान ने परिज्ञा (विवेक) का निरूपण किया है - वर्तमान जीवन के लिए, प्रशंसा, सम्मान, पूजा के लिए, जन्म, मरण और मुक्ति के लिए, दुःख का प्रतीकार करने के लिए, कोई स्वयं वनस्पतिकायिक जीवों की हिंसा करता है, दूसरों से हिंसा करवाता है तथा करने वाले का अनुमोदन करता है ।
यह उसके अहित के लिए होता है । यह उसकी अबोधि के लिए होता है।
CENSURE OF HARMING PLANT-BODIED BEINGS
43. See ! All disciplined persons feel ashamed (of violence towards plant-bodied beings).
(Also watch those) who pretend to be homeless. They indulge in sinful activities related to plants with various types of weapons. Along with, they also destroy plant-bodied beings and various other types of beings.
44. Bhagavan has revealed the truth about this — When a
शस्त्र परिज्ञा: प्रथम अध्ययन
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Shastra Parijna: Frist Chapter
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