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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र से कछुए की तरह ऊँचे और समान तलुएवाले थे। उसके शरीर का मध्य भाग सिंहके मध्य भागको तिरस्कृत करने वालोंमें अगुआ था। उसकी छाती पर्वतकी शिलाके समान थी। उसके ऊँचे-ऊँचे कन्धे बैलके कन्धोंकी तरह शोभायमान होने लगे। उस की भुजाएँ शेषनागके फणोंसी शोभित होने लगीं। उसका ललाट पूर्णिमा के आधे उगे हुए चन्द्रमा की लीला को ग्रहण करने लगा और उसकी स्थिर आकृति-मणियों के समान दन्तश्रेणी, नखों और स्वर्णतुल्य कान्तियुक्त शरीर से-मेरु पर्वत की समस्त लक्ष्मी की तुलना करने लगी।
राजा शत्बलके उच्च विचार ।
___ कुमार का अभिषेक । एक दिन सुबुद्धिमान, पराक्रमी और तत्वज्ञ विद्याधर-पति राजा शतबल, एकान्त स्थलमें, विचार करने लगा:-'अहो ! यह शरीर स्वभाव से ही अपवित्र है ; इसे ऊपर से नये-नये गहनों और कपड़ों से कबतक गोपन रख सकते हैं ? अनेक प्रकार से सत्कार करते रहने पर भी, यदि एक बार सत्कार नहीं किया जाता, तो, खल पुरुष की तरह, यह देह तत्काल विकार को प्राप्त हो जाती है। बाहर पड़े हुए विष्ठा, मूत्र और कफ वगैरः पदार्थों से लोग घृणा करते हैं; किन्तु शरीर के भीतर वे ही सब पदार्थ भरे पड़े हैं, पर लोग उनसे घृणा नहीं करते! जीर्ण हुए वृक्षके कोटर में, जिस तरह सर्प बिच्छू वगैरः क्रूर प्राणी उत्पन्न होते हैं ; उसी