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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
भरतचक्री की दिग्विजय के लिये तैयारी |
उस समय आकाश मे फिरते हुए सूर्य बिम्ब की तरह, हज़ार यक्षोंसे अधिष्ठित चक्र रत्न सेना के आगे चला । दण्डरन को धारण करने वाला सुषेण नामक सेनापतिरत्न अश्वरत्न के ऊपर चढ़कर चक्र की तरह आगे आगे चला । मानो सारी शान्ति कराने वाली विधियों में देहधारी शान्ति मन्त्र हो, इस तरह पुरोहितरत्न राजाके साथ चला । जङ्गम अन्तशाला- जैसा, फौजके लिए हर मुकाम पर दिव्य भोजन कराने में समर्थ गृहपतिरत, विश्वकर्मा की तरह, शीघ्रही पड़ाव आदि करने में समर्थ वर्द्धकी रत्न और चक्रवर्ती के सब स्कन्धावारों पड़ावों के प्रमाण और विस्तार की शक्ति वाला होने में अपूर्व चर्मरत्न और छत्ररत्न महाराजा के साथ चले । अपनी कान्ति से सूरज और चन्द्रमा की तरह अँधेरे को नाश कर सकने वाले मणि और कांकी नामक दोरन भी चलने लगे और सुर असुरोंके सारसे बनाया गया हो, ऐसा प्रकाशमान् खङ्गरत्न भी नरपति के साथ चलने लगा ।
गंगा तटपर पड़ाव |
जिस समय चक्रवतीं भरतेश्वर प्रतिहार की तरह चक्रका अनुसरण करते हुए राहमें चले, उस समय ज्योतिषियोंकी तरह अनुकुल हवा और शकुनों ने सब तरह से उनको दिग्विजय की सूचना दी। किसान जिस तरह ऊँची नीची ज़मीन को हल से