________________
ऑदिनाथ-चरित्र
४०८
प्रथम पर्व कर रखी हो, ऐसी ढाल-तलवारसे सजे हुए प्रचण्ड शक्तिशाली वीर पुरुषों के समूहसे राजद्वार शोभित हो रहा था। कहीं दूरही से नक्षत्रों तक बाण मारनेवाले और शब्दबंध करनेवाले वीर पुरुष, बाणोंका तरकस पीठपर रख, हाथमें कालपृष्ठ धनुष लिये खड़े थे। राजद्वारके दोनों ओर द्वारपालकी तरह दो हाथी अपने लम्बी सूंड लिये खड़े थे, जिससे वह राजद्वार बड़ा भया. वना दीख रहा था। उस नरसिंहका ऐसा भड़कीला सिंहद्वार (प्रवेश-द्वार ) देख, सुवेगका मन विस्मयसे भर गया। राजद्वार के पास आकर वह भीतर जानेकी आज्ञा पानेके लिये ठहर गया ; क्योंकि राजद्वारकी यही मर्यादा थी। उसकी बात सुन, द्वारपालने भीतर जाकर राजा बाहुबलीसे निवेदन किया, कि आपके बड़े भाईका सुवेग नामका एक दूत आकर बाहर खड़ा है। राजा के उसे बुला लानेकी आज्ञा देने पर द्वारपाल उस बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ सुवेगको उसी प्रकार सभामें ले गया, जिस प्रकार सूर्यमण्डलमें बुध प्रवेश करता है। ___वहां पहुंच कर पहलेसे ही आश्चर्यमें पड़े हुए सुवेगने रत्न जड़े सिंहासन पर बैठे हुए बाहुबलीको तेजके मूर्तिमान देवताकी भाँति विराजित देखा। आकाशके सूर्यकी तरह रत्नमय मुकुट धारण करनेवाले बड़े-बड़े तेजस्वी राजा उनकी उपासना कर रहे थे। अपने स्वामीकी विश्वासरूपी सर्वख वल्लीकी सन्तान, मण्डप- रूप, बुद्धिमान और परीक्षामें सचे उतरे हुए मंत्रियोंके समूहसे वे घिरे हुए थे। प्रदीप्त मुकुटमणियोंवाले और संसार