Book Title: Adinath Charitra
Author(s): Hemchandracharya, Pratapmuni
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 600
________________ प्रधम पर्व आदिनाथ-चरित्र केवल-ज्ञान प्राप्त हो गया, जैसे बादल हट जानेसे सूर्य का प्रकाश निकल आता है। ... .. ठीक उसी समय इन्द्रका आसन कांप गया, क्योंकि अचेतन वस्तुएँ भी महत् पुरुषोंकी विशाल समृद्धिको बात कह देती हैं। अवधिशानसे असल हाल मालूम कर, इन्द्र भरत राजाके पास आथे। भक्तजन स्वामीकी ही तरह स्वामीके पुत्रकी भी सेवा करनी स्वीकार करते हैं। फिर वे स्वामीके पुत्रको केवल-ज्ञान उत्पन्न होनेपर भी उसकी सेवा क्यों नहीं करते ? इन्द्रने वहाँ आकर कहा,-“हे केवलज्ञानी ! आप द्रव्यलिग स्वीकार कीजिये, जिसमें मैं आपकी वन्दना करूं और आपका निष्क्रमण-उत्सव करू।" भरततेश्वरने उसी समय बाहुबलीकी भांति पांच मुट्ठी केश उखाड़ कर दीक्षाका लक्षण अङ्गीकार किया अर्थात् पाँच मुट्ठी केश नोंचकर देवताओंके दिये हुए रजोहरण आदि उप. करणोंको स्वीकार किया। इसके बाद इन्द्रने उनकी वन्दना की, क्योंकि भले ही केवल ज्ञान प्राप्त हो गया हो तो भी अदी. क्षित पुरुषको चन्दना नहीं की जाती-ऐसा ही आचार है । उस समय भरत राजाके आश्रित दस हज़ार राजाओंने भी दीक्षा ले ली, क्योंकि उनके समान स्वामीकी सेवा परलोकमें भी सुख देनेवाली होती है। इसके बाद इन्द्रने पृथ्वीका भार सहनेवाले भरतचक्रवर्तीके पुत्र आदित्ययशाका राज्याभिषेक-उत्सव किया। ऋषभस्वामीकी तरह भरत मुनिने भी केवलज्ञान उत्पन्न .

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