Book Title: Adinath Charitra
Author(s): Hemchandracharya, Pratapmuni
Publisher: Kashinath Jain Pt

View full book text
Previous | Next

Page 576
________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र देशना क्यों नहीं देते ? देशना देकर मनुष्योंपर दया क्यों नहीं करते ? हे भगवन् ! तुम तो लोकायको चले जा रहे हो, इसीलिये नहीं बोलते ; पर मुझे दुखी देखकर भी मेरे ये भाई मुझसे क्यों नहीं बोलते ? हाँ, अब मैंने जाना। वे भी तो खामीकेही अनुगामी हैं। जब स्वामीही नहीं बोलते, तब ये कैसे बोलें ? अहो, अपने कुलमें मेरे सिवा और कोई तुम्हारा अनुगामी नहीं हुआ हो, ऐसी बात नहीं है। तीनों जगत्की रक्षा करनेवाले तुम. बाहुबलि आदि मेरे छोटे भाई, ब्राह्मी और सुन्दरी बहनें, पुण्डरीकादिक मेरे पुत्र, श्रेयांस आदि पौत्र- ये सब लोग कर्म-रूपी शत्रुकी हत्याकर, लोकामको चले गये ; केवल मैंही आजतक जीवनको प्रिय मानता हुआ जी रहा हूँ !" इस प्रकार शोकसे निवेदको प्राप्त हुए चक्रवत्तीको मानों मरनेको तैयार देख, इन्द्रने उन्हें इस प्रकार समझाना शुरू किया," हे महाप्राण भरत ! हमारे ये स्वामी स्वयं भी संसार-रूपी समुद्र से पार उतर गये और औरोंको भी उतार दिया। महानदीके किनारेके समान इनके प्रवर्तित किये हुए शासनसे सांसारिक प्राणी संसार-समुद्रके पार पहुँच जायेंगे। प्रभु आप तो कृतकृत्य हुएही, साथही वे औरोंको भी कृतार्थ करनेके लिये लक्ष पूर्व पर्यन्त दीक्षावस्था में रहे। हे राजा ! सब लोगोंपर अनुग्रह करके मोक्ष स्थानको गये हुए जगत्पतिके लिये तुम क्यों शोक करते हो? जो मृत्यु पाकर महादुःखके भण्डारके समान चौरासी लाख योनियों में बहुत कालतक घूमते रहते हैं, उनके लिये शोक करना ठीक

Loading...

Page Navigation
1 ... 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610