Book Title: Adinath Charitra
Author(s): Hemchandracharya, Pratapmuni
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 586
________________ प्रथम पर्व ५३६ आदिनाथ चरित्र मणिके ( लाल ) रंगके समान अङ्क-रत्नमय (श्वेत) थे और नाभि, केश-मूल, जिहा, तालु, श्रीवत्स, स्तनभाग तथा हाथ-पैरोंके तलभाग सुवर्णके ( लाल ) थे। बरौनी, आँखकी पुतली, रोंगटे भौहें और मस्तकके केश रिष्टरत्नमय (श्याम ) थे। ओठ प्रबालभय ( लाल ), दांत स्फटिक रत्नमय ( श्वेत); मस्तकका भाग वज्रमय और नासिका भीतरसे रोहिताक्ष-मणिके आभासकोसुवर्णकी-बनी हुई थी। प्रतिमाओंकी दृष्टियाँ लोहिताक्षमणिके प्रान्त भागवाली और अङ्कमणिकी बनवायी गयी थीं। ऐसी अनेक प्रकारकी मणियोंसे तैयार की हुई वे प्रतिमाएं बहुत ही शोभायमान मालूम होती थीं। उन प्रतिमाओंमेंसे पत्येकके पीछे एक-एक यथायोग्य मानवाली छत्रधारिणी, रत्नमय प्रतिमा बनायी गयी थी। वे छत्रधारिणी पतिमाएँ कुरंटक-पुष्पकी मालाओंसे युक्त, मोतियों और लालोंसे गुथे हुए तथा स्फटिक-मणिके डंडोंवाले श्वेत छत्र धारण किये हुए थीं । प्रत्येक पुतिमाके दाहिने-बाँयें रत्नोंके चैवर धारण करनेवाली दो प्रतिमाएँ और आगे नाग, यक्ष, भूत और कुण्डधार की दो-दो पतिमाएँ थीं। हाथ जोड़े हुई, सर्वाङमें उज्ज्वल शोभा धारण किये हुई, वे नागादिक देवोंकी रत्नमयी प्रतिमाएं ऐसी शोभायमान मालूम होती थीं, मानों वे वहाँ साक्षात बैठी हुई हों। देवच्छन्दके ऊपर उज्ज्वल रत्नोंके चौवीस घण्ट, संक्षिप्त किये हुए सूर्य-विम्बके समान माणिक्यके दर्पण, उनके पास उचित स्थानपर रखी हुई सुवर्णकी दीपिकाएं, रत्नोंकी पिटारियाँ, नदीके

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