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आदिनाथ चरित्र ५३४
प्रथम पर्व कोई आगे-आगे देव-दृष्य वस्त्रोका तोरण बनाये हुए थे तो कोई यक्षकईमसे छिड़काव करते चलते थे। कोई गोफणसे * फेंके हुए पत्थरकी तरह शिविकाके आगे लोट रहे थे और कोई भंग पिये हुए मस्तानेकी तरह पीछेकी तरफ़ दौड़ रहे थे। कोई तो " हे नाथ! मुझे शिक्षा दो !" ऐसी प्रार्थना कर रहा था और कोई "अब हमारे धर्म-संशयोंका छेदन कौन करेगा?" ऐसा कह रहा था। कोई यही कह-कहकर पछता रहा था, कि अब मैं अन्धेकी तरह होकर कहाँ जाऊँ ? कोई बार-बार धरतीसे यही वर मांगता हुआ मालूम पड़ता था, कि वह फट जाये और वह उसमें समा जाये।
इस प्रकार बर्त्तते और बाजे बजाते हुए इन्द्र और देवतागण उन शिविकाओंको चिताओंके पास ले आथे। वहाँ आकर कृतशता-पूर्ण हृदयसे इन्द्रने, पुत्रके समान, प्रभुके शरीरको धीरे-धीरे पूर्व दिशाकी चितापर ला रखा। दूसरे देवताओंने भी भाईकी तरह इक्ष्वाकु-कुलके मुनियों के शरीरको दक्षिण दिशावाली चितामें ला रखा और उचितानुचितका विचार रखनेवाले अन्यान्य देवताओंने भी शेष साधुओंके शरीर पश्चिम दिशावाली चितामें लाकर रख दिये। पीछे अग्निकुमार देवताओंने इन्द्रके आज्ञानुसार उन चिता
ओंमें अग्नि प्रकट की और वायुकुमार देवोंने हवा चलाकर चारों ओर धांय-धाय आग जला दी। देवता ढेर-का-ढेर कपूर और घड़े भर-भर कर घी तथा मधु चितामें छोड़ने लगे। जब सिवा हड्डोके और सब
* गोफण-अकसर लड़के खेलमें रस्सी आदिमें ईट या पत्थर बाँधकर फेंकते हैं। उसीको गोफण कहते हैं।