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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
-धीरे शुद्धिको प्राप्त हो जायेगा। इसके बाद वह पहले तो इस भरतक्षेत्र के पोतनपुर नामक नगर में त्रिपृष्ठ नामका प्रथम वासुदेव होगा । पीछे पश्चिम महाविदेहमें धनंजय और धारिणी नामक दस्पतीका पुत्र प्रियमित्र नामक चक्रवत्त होगा । तदनन्तर बहुत दिनों तक संसार में भ्रमण करनेके बाद इसी भरतक्षेत्रमें महावीर नामका चौबीसवाँ तोर्थङ्कर होगा ।"
यह सुन, स्वामीकी आज्ञा ले, भरतराजा भगवानकी ही भाँति मरिचिकी वन्दना करने गये । वहाँ जाकर उसकी वन्दना करते हुए भरतने उससे कहा, –“तुम त्रिपृष्ट नामक प्रथम वासुदेव होगे अ'थवा महाविदेहक्षेत्र में प्रियमित्र नामके चक्रवर्त्ती होंगे, यह जानकर मैं तुम्हारे वासुदेव पद या चक्रवर्त्तित्वको सिर नहीं झुकाता और न तुम्हारे परिव्राजकपनेकी ही वन्दना करता हूँ; बल्कि तुम चौबीसवें तीर्थङ्कर होगे, इसीसे मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ ।" -यह कह, हाथ जोड़, प्रदक्षिणा कर, सिर झुकाकर भरतेश्वरने मरीचिकी वन्दना की। इसके बाद पुनः जगत्पतिकी वन्दना कर, सर्पराज जैसे भोगवती-पुरीमें चला जाता है, वैसेही भरत- राजाभी अयोध्या नगरीमें चले आये I
भरतेश्वरके चले जाने बाद, उनकी बातें सुनकर प्रसन्न बने हुए मरिचिने तीन बार तालियाँ बजायीं और अधिक हर्षित हो, इस प्रकार कहना आरम्भ किया, "अहा ! मैं सब वासुदेवों में पहला हुँगा, विदेहमें चक्रवर्ती हूँगा, सबसे पिछला तीर्थंकर हूँगा, अब बाकी क्या रहा ? सब अर्हन्तों में मेरे दादाही आदि-तीर्थंकर
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