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आदिनाथ चरित्र
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प्रथम पर्व
पर रहने वाले बन्दरों की पूँछोंसे वेष्टित इमलीके वृक्ष पीपल और
बड़के वृक्षों का भ्रम उत्पन्न कर रहे थे । अपनी अद्भुत विशालता की सम्पत्ति मानों हर्षित हुए हों, ऐसे निरन्तर फलनेवाले पनस वृक्षों से वह पर्वत शोभित हो रहा था । अमावस्या की रात्रिके अन्धकारकी भाँति श्लेष्मान्तक वृक्षसे वह पर्वत ऐसा मालूम होता था, मानों वहाँ अञ्जनाचलकी चोटियाँ ही चली आयी हों । तोतेकी चोंचकी तरह लाल फूलोंवाले केसुड़ीके वृक्षोंसे वह पर्वत लाल तिलकोंसे सुशोभित हाथीकी तरह शोभायमान मालूम होता था । कहीं दाखकी, कहीं खजूर की और कहीं ताड़ की ताड़ी पीनेमें लगी हुई भीलोंकी स्त्रियाँ उस पर्वतके ऊपर पानगोष्टी जमाये रहती थीं। सूर्यके अचूक किरणरूपी वाणसे अभेद्य ताम्बूल-लता के मण्डपों से वह पर्वत कवचावृत्तता मालूम होता था । वहाँ हरी-हरी दूबोंको खाकर हर्षित हुए मृगों का समूह बड़े-बड़े वृश्नोंके नीचे बैठकर जुगाली करता रहता था । मानों अच्छी जातिके वैडूर्य-मणि हों, ऐसे आम्र फलोंके स्वाद में जिनकी चोंचें मग्न हो रही हैं, ऐसे शुक्र पक्षियोंसे वह पर्वत बड़ा मनोहर दिखाई देता था । चमेली, अशोक, कदम्ब, केतकी और मौलसिरीके वृक्षोंका पराग उड़ाकर ले आनेवाले पवनने उस पर्वत की शिलाओं को रजोमय बना दिया था और पथिकोंके फोड़े हुए नारियलोंके जलसे उसके ऊपर की भूमि पंकिल हो गयी थी । मानों भद्रशाल आदि वनमें से ही कोई वन यहाँ लाया गया हो, ऐसे अनेक बड़े-बड़े वृक्षोंसे शोभित वनके कारण वह पर्वत बड़ा सुन्दर