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प्रथम पवे
.. आदिनाथ-चरित्र
और चक्रवर्ती होंगे। हे प्रभु! आप कृपाकर उनके नगर, गोत्र, माता-पिताके नाम, आयुवर्ण, शरीरका मान, परस्पर अन्तर, दीक्षा-पर्याय और मति आदि मुझे बतला दीजिये ।” ___ भगवान ने कहा,-" हे चक्रो! मेरे बाद इस भरतखण्डमें तेईस अर्हन्त और होंगे और तुम्हारे बाद और भी ग्यारह चक्र. वत्ती होंगे। उनमें बीसवें और बाईसवें तीर्थकर गौतम-गोत्रके होंगे और शेष सब कश्यप-गोत्रके । वे सब मोक्षगामी होंगे। अयोध्यामें जितशत्रु राजा और विजयारानीके पुत्र अजित दूसरे तीर्थङ्कर होंगे। उनकी बहत्तर लाख पूर्वकी आयु, सुवर्णकीसी कान्ति और साढ़े चार सौ धनुषोंकी काया होगी और वे पूर्वाङ्ग* से न्यून लक्षपूर्वके दीक्षा-पर्यायवाले होंगे। मेरे और अजितनाथके निर्वाणकालमें पचास लाख कोटि सागरोपमका अन्तर होगा । धावस्तो-नगरोमें जितारि राजा और सोनारानीके पुत्र सम्भव तीसरे तीर्थङ्कर होंगे। उनका सोनेका सा वर्ण साठ लाख पूर्वकी आयु और चार-चार सौ धनुषोंको ऊँचाईका शरीर होगा । वे चार पूर्वाइसे हीन लाख पूर्वका दीक्षा-पर्याय पालन करेंगे और अजितनाथ तथा उनके निर्वाणके बीचमें तीस लाख कोटि सागरोपमका अन्तर होगा । विनीतापुरीमें राजा संवर और रानी सिद्धार्थाके पुत्र, अभिनन्दन नामसे चौथे तीर्थङ्कर होंगे । उनको पचास लाख पूर्वकी आयु, साढ़े तीन सौ धनुषकी काया और सोने कीसी शरीरकी कान्ति होगी। उनका दीक्षा-पर्याय आठ
*ौरासी लाख वर्षको पूर्वाङ्ग कहते है ।