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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व करनेके कारण वे क्रमशः “माहना” नामसे प्रसिद्ध हो गये। वे अपने बालक साधुओंको देने लगे। उनमें से कितनेही स्वेच्छापूर्वक विरक्त होकर व्रत ग्रहण करने लगे और कितने ही परिषह सहन करनेमें असमर्थ होकर श्रावक होगथे। काँकिणी-रत्नसे अङ्कित होनेके कारण उन्हें भी भोजन मिलने लगा। राजा उनको इस प्रकार भोजन देते थे, इसीलिये और-और लोग भी उनको जिमाने लगे। क्योंकि बड़ों से पूजित मनुष्य सबसे पूजित होने लगते हैं । उनके स्वाध्यायके लिये चक्रवर्तीने अहेन्तों की स्तुति और मुनियों तथा श्रावकोंकी समाचारीसे पवित्र चार वेद रचे । क्रमशः वे ही माहनासे ब्राह्मण कहलाने लगे और काँकिणी-रत्नकी तीन रेखा
ओं के बदले यज्ञोपवीत धारण करने लगे। भरत राजाके बाद जब उनके पुत्र सूर्ययशा गद्दी पर बैठे, तब उन्होंने कांकिणीरत्नके अभावमें सुवर्णके यज्ञोपवीतकी चाल चलायी। उनके बाद महायशा आदि राजा हुए। इन लोगोंने चाँदीका यज्ञोपवीत चलाया। पीछे पट्ट-सूत्रमय यज्ञोपवीत जारी हुआ और अन्तमें साधारण सूतकेही यज्ञोपवीत रह गये।
भरत राजाके बाद सूर्ययशा राजा हुए। उनके बाद महायशा, तब अतिबल, तब बलभद्र, तब बलवीर्य तव कीर्तीवीर्य तब जलवीर्य और उनके बाद दण्डवीर्य इन—आठ पुरुषों तक ऐसाही आचार जारी रहा। इन्हों ने भी इस भरतार्द्धका राज्य भोगा और इन्द्रके रचे हुए भगवानके मुकुटको धारण किया। फिर दूसरे राजाओंने मुकुटकी बड़ी लम्बाई-चौड़ाई देख, उसे नहीं धारण