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आदिनाथ-चरित्र . ४१४
प्रथम पर्व बड़प्पन है, कि वे अपने भाईसे मिलना चाहते हैं : परन्तु सुर, असुर और अन्य राजाओंकी लक्ष्मो पाकर ऋद्धिशाली बने हुए वे अल्प वैभवशाली राजा मेरे जानेसे लजित होंगे, यही सोचकर मैं अब तक वहाँ नहीं गया। साठ हज़ार वर्ष तक पराये राज्यों का हरण करने में लगे हुए उनका अपने छोटे भाइयोंका राज्य हड़प जानेके लिये ब्यग्र होना अकारण नहीं है। यदि वे अपने भाइयों पर प्रेम रखते, तो उनके पास राज्य अथवा संग्रामकी इच्छासे दूत किस लिये भेजते ? ऐसे लोभी, पर साथ ही बड़े भाईके साथ कौन युद्ध करे ? यही सोच कर मेरे परम उदारहृदय भाइयोंने पिताका अनुसरण किया। उनका राज्य हड़प कर जानेका बहाना ढूंढ़ने वाले तुम्हारे स्वामीकी सारी कलई इस बातसे खुल गयी। इसी तरह मुझे भी झूठा स्नेह दिखला कर फँसानेके लिये उन्होंने तुमसे चतुर वक्ताको मेरे पास भेजा है। मेरे अन्य भाइयोंने जिस प्रकार दीक्षा ले, उन्हें अपना राज्य देकर हर्षित किया है, वैसा ही हर्ष मैं भी उन राज्यके लोभीको वहाँ पहुँच कर दूं ? ऐसा तो नहीं हो सकता। क्योंकि मैं वज्रसे भी कठोर हूँ; परन्तु अल्प वैभव वाला होकर भी मैं भाईके तिरस्कारके भयसे उनकी वृद्धि में हिस्सा बँटाने नहीं जाता। वह फूलसे कोमल हैं, पर मायावी हैं ; क्योंकि उन्होंने भाई-भाई के झगड़ेसे डरने वाले अपने छोटे भाइयोंका राज्य आप हड़प लिया। है दूत ! मैं भाइयोंका राज्य हड़प कर जाने वाले भरतकी उपेक्षा करता हूँ, इस लिये सचमुच मैं निर्भयसे भी