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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
सिंहको पकड़ मंगवानेकी तरह इस बाहुबलीको सेवाके लिये बुलवाया | स्वामीके हितको माननेवाले मंत्रियों और मुझको धिक्कार है, जो हम लोगोंने इस मामलेमें शत्रुकी तरह उनकी उपेक्षा की। लोग यही कहेंगे कि सुवेगने ही जाकर भरतसे बाहुबलीकी लड़ाई छिड़वायी । ओह! गुणको दूषित करनेवाले इस दूतपनको धिक्कार है !
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रास्ते भर इसी प्रकार विचार करता हुआ, नीति-निपुण सुवेग कितने ही दिन बाद अयोध्या नगरीमें आ पहुँचा । द्वारपाल उसे सभामें ले गया । वह प्रणाम कर हाथ जोड़े हुए बैठा ही था, कि महाराजने उससे बड़े आदर के साथ पूछा,“सुवेग ! मेरा छोटा भाई बाहुबली कुशल से है न ? तुम वहाँ से बड़ी जल्दी चले आये, इससे मुझे बड़ी चिन्ता हो रही है । अथवा उसने तुम्हें खदेड़ दिया है, इसीलिये तुम झटपट चले आए हो ? क्योंकि यह वीरवृत्ति तो मेरे बलवान् भ्राताके योग्य ही है ।"
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सुवेगने कहा - "हे महाराज ! आपके ही समान अतुल पराक्रम वाले उन बाहुबली राजाकी बुराई करनेको देव भी समर्थ नहीं है । वे आपके छोटे भाई हैं, इसीलिये मैंने पहले उनसे स्वामीकी सेवा करनेके लिये आनेको विनय-पूर्वक हितकारी वचन कहा ; इसके बाद औषधकी तरह कड़वे, पर परिणाम में उपकारोतीखे वचन कहे ; पर क्या मीठे, क्या कड़वे, किसी तरहके वाक्यों से वे आपकी सेवा करने को नहीं तैयार हुए। जैसे सन्निपात के रोगीको दवा थोड़े ही असर करती है ? वह बलवान् बाहुबली