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प्रथम पव
__ ४६५ मादिनाथ चरित्र अभी इस प्रकार निन्दा करनेकी भी क्या ज़रूरत है ? जब तक मेरे बड़े भाई पृथ्वी पर गिरकर चूर-चूर हुआ चाहें, तबतक मैं उन्हें बीचसे ही झेल लूं, तो ठीक हो।" ऐसा विचार कर उन्होंने अपनी दोनों भुजाएँ फैलाकर नोचे शय्या सी तैयार की। उपरको हाथ उठाये रहने वाले तपखियोंकी तरह दोनों हाथ ऊपर उठाये हुए बाहुबली क्षण मात्र तक सूर्य के सम्मुख देखने वाले तपस्वीकी तरह भरतकी ओर देखते रहे। मानों उड़नेकी इच्छा रखते हों, ऐसे उठे हुए पैरों पर खड़े रहकर उन्होंने भरतराजाको गेंदकी तरह बड़ी आसानीसे ग्रहण कर लिया। उस समय दोनों सेनाओंमें उत्सर्ग और अपवाद मार्गकी तरह चक्रीके उठाले जानेसे खेद, और रक्षा पाजानेसे हर्ष हुमा। इस प्रकार भाईकी रक्षा करनेसे प्रकट होने वाले श्री ऋषभदेवजीके छोटे पुत्रके विवेकको देखकर लोग उनकी विद्या शील और गुणके साथ ही-साथ पराक्रमकी भी प्रशंसा करने लगे और देवता ऊपरसे फूलोंकी वर्षा करने लगे। पर ऐसे वीर-व्रतधारी पुरुषका इससे क्या होता है ? उस समय जैसे अग्नि धुएं और लपटसे भरी होती है, वैसेही भरत राजा इस घटनासे खेद गौर क्रोधसे भर उठे। ___ उस समय लज्जासे सिर झुकाये हुए, बड़े भाईकी मेंप दूर करनेके इरादेसे बाहुबलीने गद्गद स्वरसे कहा,- हे जगत्पति ! हे महावीर ! हे महाभुज ! आप खेद न करें। कभी-कभी देवयोगले विजयी पुरुषोंको भी अन्य पुरुष जीत लेते हैं, पर इसी इत