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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व
समय पुष्करावर्तसे निकली हुई विद्युत ध्वनिके भ्रममें पड़ कर पृथ्वीपर लोटने लगे। देवतागण वह कर्णकटु शब्द सुन, असमयमें प्राप्त होनेवाले दैत्यके उपद्रवसे पैदा हुए कोलाहलके भ्रममें पड़कर बड़े ही व्याकुल हो गये। वह दुःश्रव सिंहनाद मानों लोकमालिकाके साथ स्पर्धा करता हुआ अधिकाधिक फैलने लगा । बाहुबलीका सिंहनाद सुन, भरत राजाने फिर देवताओंकी स्त्रियोंको हरिणीकी तरह डरा देनेवाला सिंहनाद किया । इसी प्रकार भरतराजाका नाद क्रमसे हाथीकी सूंड़के समान होतेहोते साँपके शरीरकी तरह न्यून होता चला गया और बाहुबली का नाद नदीके प्रवाह और सजनके स्नेहकी तरह क्रमशः अधिकाधिक बढ़ता चला गया। इस तरह जैसे शास्त्र सम्बन्धी वाग्युद्धमें वादी प्रतिवादीको जीत लेता है, वैसे ही वीर बाहु. बलीने भरत राजाको जीत लिया । ___ इसके बाद दोनों भाई कमर-बन्द हाथियोंकी तरह वाहुयुद्ध करने के लिये कमर कस कर तैयार हुए। उस समय उछलते हुए समुद्रकी भौति गर्जन करते हुए बाहुबलीके एक मुख्य प्रतिहारीने जो सोनेकी छड़ी हाथमें लिये हुएथा, कहा,–“हे पृथ्वी? वज्रकी कीलोंके समान पर्वतों तथा अन्य सब प्रकारके बलोंका आश्रय ग्रहण कर तुम स्थिर रहो। हे नागराज ! चारों ओरके पवनको ग्रहण कर उसके वेगको रोकनेवाले पर्वतकी भाँति दड़ होकर तुम इस पृथ्वीको धारण किये रहो, हे महावराह ! समुद्र के कीचड़में लोटकर पूर्व श्रमको दूर कर फिरसे ताज़ादन होकर