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प्रथम पर्व
आदिनाथ चरित्र उनकी सेना, मण्डलोंके प्रकाशसे, अस्खलिततासे - बेखटके चलने लगी । संचार करने वाली चक्रवर्तीकी सेना से वह गुफा असुरादिककी सैन्यसे रत्नप्रभाके मध्य भाग जैसी शोभने लगी । मथनदण्ड या रईसे मथनीमें जैसी आवाज होती हैं, उस संचार करने वाली सेना से वह गुफा उद्दाम घोष घोर शब्द करने लगी अर्थात् सेनाके चलने से गुरुामें घोर रव होने लगा ।
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जिस गुफा में किसी भी सञ्चार नहीं किया था, उस गुफाके मार्ग में रथोंके कारण लीफें बन गई और घोड़ोंकी टापोंसे कंकर उड़ गये, अतः वह नगर मार्गके जैसा हो गया सेनाके लोगों के चलने से वह गुफा लोकनालिका या पगडण्डीके समान टेढ़ी तिरछी होगई | चलते-चलते तमिस्रा गुफाके मध्य भागमें - अघो वस्त्र के ऊपर रहने वाली कटिमेखला या कर्द्ध नीके समानउन्मग्ना या निमग्ना नामकी नो नदियोंके निकट चक्रवर्त्ती जा पहुँचे वे नदियाँ ऐसी दीखती थीं गोया दक्खन और उत्तर भरतार्द्धसे आने वाले लोगोंके लिये, वैताढ्य पर्वतने नदियोंके बहाने से दो आज्ञा रेखायें खींच रखी हों। उनमें से उन्मग्ना नदीमें पत्थरकी शिला तूम्बीकी तरह तैरती हैं और निमग्नामें तूम्बी भी पत्थर की शिला की तरह डूब जाती है । वे दोनों नदियाँ मित्रा गुफाकी पूर्व भित्ति में से निकलती हैं और पश्चिम भित्ति के बीच में होकर, सिन्ध नदी में मिलती हैं । उन नदियोंके ऊपर मानो वैतालकुमार देवकी विशाल एकांत शय्या हो, ऐसी एक निर्दोष पुलिया बना दी । वह पुलिया वार्द्धकिरत्नने क्षण भर में
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