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प्रथम पर्व
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आदिनाथ-चरित्र तरह चक्रवर्ती के हस्तस्पर्श या हाथसे छू देने से चर्मरत्न बारह योजन या छियानवे मील बढ़ गया। समुद्र के बीचमें ज़मीन हो इस तरह जलके ऊपर रहने वाले चर्मरत्न पर महाराज सेना समेत रहे। फिर ; प्रवाल या मूगों से जिस तरह क्षीरसागर शोभता है, उस तरह सुन्दर कान्तिमयी सोने की नवाणु हजार शलाकाओं से शोभित, नालसे कमल की तरह, छेद और गाँठों रहित सरलता से सुशोभित, सोने के डण्डे से सुन्दर और जल, धूप, हवा और धूपसे रक्षा करने में समर्थ छत्ररत्न राजाके छूनेमात्र से चमरत्न की तरह बढ़ गया। उस छत्रद-ण्डके ऊपर अन्धकार नाश करने के लिए, सूर्यके समान अत्यन्त तेजस्वी मणिरत्न स्थापित किया । छत्ररत्न और चर्म रत्न का वह संपूट तैरने वाले अण्डे की तरह दीखने लगा। उसी समय से दुनियाँमें ब्रह्माण्ड की कल्पना हुई। गृहिरत्न के प्रभाव से उस चर्मरत्न पर, जैसे अच्छे खेतमें वेरे ही बोये हुए अनाज शाम को पैदा हो जाते हैं : चन्द्र-सम्बन्धी महलों की तरह उसमें प्रातः कालको लगाये हुए कोहले, पालक और मूली प्रभृति सायं. काल को उत्पन्न होते हैं और सवेरे के वक्त के लगाये हुए केले आदिके फल-वृक्ष भी महान् पुरुषोंके आरम्भ के समान सन्ध्या समय फल जाते हैं । उसमें रहने वाले लोग पूर्वोक्त धान्य, साग और फलों को खाकर सुखी होते हैं और बगीचों में क्रीड़ा करने को जाकर रह गये हों, उस तरह करक का श्रम भी न जानते थे मानों महलों में रहते हों उस तरह मर्त्य लोकके पति महाराज