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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
रूपी अत्रोंसे निरन्तर युद्ध करते हुए पुरुषों को चाहिये, कि इन बेरियोंको जीते और सत्य शरण भूत धर्मकी सेवा करें, जिससे शाश्वत आनन्दमय पदकी प्राप्ति सुलभ हो । यह राज- लक्ष्मी अनेक योनियोंमें भ्रमण करने वाली, अतिशय पीड़ा देनेवाली, अभिमान रूपी फल देने वाली और नाशवान है I इसलिये हे पुत्रों ! पूर्व में स्वर्गके सुखोंसे भी जब तुम्हारी तृष्णा न मिटी, तब कोयला करने वालेके समान मनुष्य सम्बन्धी भोगों से वह कैसे मिटेगी ? कोयला करने वालेका सम्बन्ध इस प्रकार है
"कोई कोयला करने वाला पुरुष पानीसे भरी हुई मशक लिये हुए एक निर्जल अरण्य में कोयला करनेके लिये गया । वहाँ मध्याह्न और अँगारेको गरमी से उसे ऐसी तृषा उत्पन्न हुई, कि वह अपने साथ लायी हुई मशकका सारा पानी पी गया, तो भी उसकी प्यास नहीं मिटी । इतनेमें उसे नींद आगयी । स्वप्नमें ही वह मानों अपने घर पहुँच गया और घर के अन्दर जितने घड़े, आदि पात्र जल से भरे रखे थे । उन सबको सफाचट कर गया, तथापि जैसे तेल पीकर अग्नि तृप्त नहीं होती, वैसे ही उसकी भी तृषा नहीं दूर हुई। तब उसने बावली कुएँ और सरोवरका जल सोख लिया । इसी तरह नदियों और समुद्रों का जल भी उसने सोख लिया, पर उसकी नारकी जीवोंकी सी तृषा-वेदना नहीं दूर हुई । इसके बाद उसने मरुदेशमें ( मारवाड़ में ) जाकर रस्सीके सहारे दभेका दोना बना कर जलके निमित्त कुएँ में डाला - क्योंकि आर्त्त मनुष्य क्या नहीं करता ? कुऍमें जल बहुत नीचे था; इसलिये