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आदिनाथ चरित्र
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प्रथम पर्व तैयार कर दी, क्योंकि गुहाकार कल्पवृक्षको जितनी देर भी उसे नहीं लगती । उस पुलियाके ऊपर अच्छी तरहसे जोड़े हुए पत्थर इस तरहसे लगाये गये थे, जिससे सारी पुलिया और उपरकी राह एकही पत्थर से बनी हुई, की तरह शोभती थी हाथके समान समतल और वज्रवत् मज़बूत होने के कारण से वह पुलिया और राह गुफाद्वारके दोनों किवाड़ोंसे बनाई हुई सी जान पड़ती थी । पदविधि या समासविधिकी तरह, समर्थ चक्रवर्त्ती सेना सहित उन दोनों दुस्तर नदियोंके पार उतर गये । सेनाके साथ चलने वाले महाराज, अनुक्रमसे, उत्तर दिशाके मुख जैसे, गुफा के उत्तर द्वारके पास आ पहुँचे । उसके दोनों किवाड़ मानों दक्खनी दरवाज़ेके किवाड़ोंका शब्द सुन कर भयभीत हो गये हों, इस तरह - आपसे आप खुल ये | वे किवाड़ खुलते वक्त "सर सर" शब्द करने लगे । उस "सर सर" शब्द से ऐसा जान पड़ता था, मानो ये चक्रवर्त्तीकी सेनाको गमन करनेकी प्रेरण करते हों-आगे बढ़ने को कहते हों। गुफा की दोनों ओर की दीवारोंसे वे दोनों किवाड़ इस तरह चिपट गये कि गोया पहले थे ही नहीं और दो भोगलों से दीखने लगे । पीछे सूर्य जिस तरह बादलों में से निकलता है, इस तरह पहले चक्रवर्त्ती के आगे-आगे चलने वाला चक्र गुफामें से निकला और पातालके छेदमें से जिस तरह बलिन्द्र निकलते हैं, उस तरह पीछे पृथ्वीपति भरत महाराज निकले । पीछे विन्ध्याचलकी गुफा की तरह, उस गुफा में से निःशंक होकर मौजके साथ चलते हुए गजेन्द्र निकले ।