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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
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श्वरको अर्पण किया उसके साथही अपने मूर्त्तिमान तेज-जैसे कड़े कौंधनी, मुकुट, हार तथा अन्यान्य द्रव्य चक्रवतीं को भेट किये। उसे आश्वासन देने के लिए राजी करने के लिए--उसकी दिलशिकनीका ख़याल करके महाराजने भेटके समस्त द्रव्य ले लिये। क्योंकि भेट लेना स्वामीकी कृपा का पहला चिह्न है । क्यारीमें जिस तरह वृक्षको स्थापन करते हैं, उसी तरह उसे वहाँ स्थापन करके – मुकर्रर करके शत्रुनाशन महाराज अपने कटक में पधारे 1 कल्पवृक्षके समान गृहिरन द्वारा लाये गये दिव्य भोजनोंसे उन्होंने अष्टमभक्त का पारणा किया और प्रभास देवका अष्टान्हिका उत्सव किया : क्योंकि पहली बार तो सामन्त जैसे राजा की भी सत्वृति करनी उचित है।
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सिन्धु देवि प्रभृति को साधना ।
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जिस तरह दीपकके पीछे-पीछे प्रकाश चलता है: उसी तरह चक्रके पीछे पीछे चलने वाले चक्रवर्त्ती महाराज, समुद्रके दक्खन किनारेके नजदीक, सिन्धनदी के किनारे पर आ पहुँचे उसके किनारे किनारे पूर्वाभिमुख चलकर सिन्धदेवी के सदन के समीप उन्होंने पड़ाव डाला । वहाँ अपने मनमें सिन्धुदेवी का स्मरण कर उन्होंने अष्टमतप लहरोंकी तरह सिन्धुदेवी का आलन चलायमान हुआ । अवधिज्ञान में चक्रवत्त को आये हुए समझ, उत्तमोत्तम दिव्य वस्तुएँ भेट में देने के लिये लेकर, उनके सम्मानार्थ वह २२
किया । इससे, वायुसे ताड़ित