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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
और जगदीपक को जननेवाली हे जगत्माता ! मैं आप को नमस्कार करता हूँ । आप धन्य हैं, आप पुण्यवती हैं, और आप सफल जन्मवाली तथा उत्तम लक्षणोंवाली हैं । त्रिलोकीमें frant gadi स्त्रियाँ हैं, उन में आप पवित्र हैं, क्योंकि आपने धर्म का उद्धार करने में अग्रसर और आच्छादित हुए मोक्ष-मार्गको प्रकट करनेवाले भगवान् आदि तीर्थङ्कर को जन्म दिया है; अर्थात् आप से धर्म को उद्धार करनेवाले और छिपे हुए मोक्षमार्ग को प्रकाशित करनेवाले भगवान् का जन्म हुआ है । है देवि ! मैं सौधर्म देवलोक का इन्द्र हूँ । आप के पुत्र अर्हन्त भगवान् का जन्मोत्सव मनाने के लिए यहाँ आया हूँ । इस लिये आप मुझ से भय, न करना- मुझ से ख़ौफ़ न खाना । ये बातें कहकर, सुरपति ने मरुदेवा माता के ऊपर अवस्थापनिका नाम की निद्रा निर्माण की और प्रभु का एक प्रतिविम्व बनाकर उनकी बग़ल में रख दिया । पीछे इन्द्रने अपने पाँच रूप बनाये, क्योंकि ऐसी शक्तिवाला अनेक रूपों से स्वामी की योग्य भक्ति करना चाहता है । उनमें से एक रूप से भगवान् के पास आकर, प्रणाम किया और विनय से नम्र हो - 'हे भगवन् आज्ञा कीजिये ' वह कहकर कल्याणकारी भक्तिवाले उस इन्द्रने गोशीर्ष चन्दन से चर्चित अपने दोनों हाथों से मानो मूर्त्तिमान कल्याण हो इस तरह, भुवनेश्वर भगवान को ग्रहण किया । एक रूप से जगत् का ताप नाश करने में छत्र रूप जगत्पति के मस्तकपर, पीछे खड़े होकर छत्र धारण किया; स्वामी की दोनों ओर,