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आदिनाथ चरित्र
और उसे सन्तुष्ट और राज़ी करता था । कोई पुरुष अपनी प्राणवल्लभाकी लीला या खेल में फैंकी हुई गेंदको, नौकर की तरह उठा लाकर उसे देता था । गमनागमन के अपराधी पतियों पर जिस तरह स्त्रियाँ पादप्रहार करती हैं, उसी तरह कितनी ही कुरंगलोचनी सुन्दरियाँ वृक्षके अग्रभाग पर अपने पाँवों से प्रहार करती थीं । कोई झूले पर बैठी हुई हालकी व्याही हुई बहू या नवौढ़ा कामिनी उसके स्वामीका नाम पूछने वाली सखियोंके लता - प्रहार को शर्म के मारे मुख मुद्रित करके चुपचाप सहती थी। कोई पुरूप अपने सामने बैठी हुई भीरु कामिनीके साथ झूले पर बैठ कर, गाढ़ आलिङ्गन की इच्छासे, उसे ज़ोर से छाती से लगाने की ख्वाहिशसे झूले को खूब ज़ोर से चढ़ाता था । कितने ही नौजवान रसिये बाग़के दरख्तों में बँधे हुए झूलों को जब लीलासे ऊँचे चढ़ाते थे, तब बन्दरों की तरह अच्छे मालूम होते थे ।
वसन्त क्रीड़ासे वैराग्योत्पत्ति |
लोकान्तिक देवका आगमन ।
उस शहर के लोग इस तरह क्रीड़ा और आमोद-प्रमोद में मग्न
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थे । उनको इस दशामें देखकर प्रभु मन-ही-मन विचार करने लगेक्या ऐसी क्रीड़ा, ऐसा आमोद-प्रमोद, ऐसा खेल क्या किसी और जगह भी होता होगा ? ऐसा विचार आते ही, अवधि ज्ञानसे, प्रभुको स्वयं पहले के भोगे हुए अनुत्तर विमान तक के स्वर्ग-सुख याद आगये । उन्हें पहले जन्मों के भोगे हुए स्वर्ग-सुखों का स्म
प्रथम पव