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प्रथम पद
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आदिनाथ-चरित्र जो समकित उत्पन्न होता है, वह गुरुके अधिगमसे हुआ समकित कहलाता है। ___समकित के औपशमिक सास्वादन, क्षायोपशमिक, वेदक
और क्षायिक—ये पाँच प्रकार या भेद हैं। जिसकी कर्म ग्रन्थि मिदी हुई है, ऐसे प्राणी को जो समकित का लाभ, प्रथम अन्तमुहुर्त में होता है, वह औपशामिक समकित कहलाता है। उसी तरह उपशम श्रेणी के योग से जिसका मोह शान्त हुआ हो ऐसे देही-प्राणी को मोह के उपशम से उत्पन्नहो बह भी औपशमिक समकित कहलाता है। सम्यक्भावका त्याग करके मिथ्यात्व के सन्मुख हुए प्राणी को, अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय होने पर, उत्कर्षसे छः आवली तक और जघन्य से एक समय समकित का परिणाम रहता है, वह सास्वादन समकित कहलाता है। मिथ्यात्व मोहनी का क्षय और उप शम होने से उत्पन्न हुआ-तीसरा क्षयोपशमिक समकित कहलाता है। वह समकित मोहनी के उदय परिणाम वाले प्राणी को होता है। ___ समकित दर्शन गुणसे रोचक, दीपक और कारक-इन नामों से तीन प्रकार का है। उनमें से शास्त्रोक्त तत्वों में हेतु और उदाहरण के बिना—जो दृढ़ प्रतीति उत्पन्न होती है वह रोचक समकित। जो दूसरों के समकितको प्रदीप्त करे वह दीपक समकित, और जो संयम और तप आदि को उत्पन्न करता है, वह कारक समकित कहलाता है। वह समकित-शम, संवेग, निर्वेद और अनुकम्पा एवं आस्तिक्य-इन पांच लक्षणों से अच्छी तरह पह
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