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आदिनाथ-चरित्र २६२
प्रथम पर्व रत्नमय नवीन कण्ठाभरण जैसी नौ चोटियाँ उस पहाड़ पर हैं। यहाँ देवता क्रीड़ा करते हैं। दक्खन और उत्तर ओर १६० मील की ऊँचाई पर, मानो वस्त्र हों ऐसी व्यन्तरों की दो निवास श्रेणियाँ उस पहाड़ पर मोजूद हैं। नीचे से चोटी तक मनोहर सोने की शिलाओंवाले उस पर्वत को देखने से मालूम होता है मानों स्वर्गके एक पाँव का आभरण या गहना नीचे गिरा हुआ है। हवाके कारण से पहाड़ के ऊपर के वृक्षों की शाखायें हिल रही थीं, उनके देखने ऐसा जान पड़ता था, मानो पर्वत की भुजायें दूरसे बुला रही हों। उसी वैताढ्य पर्वत पर नामि और विनमि जा पहुँचे।
नमि राजाने, पृथ्वी से अस्सी मील की ऊँचाई पर, उस पर्वत की दक्खन श्रेणी में पचास शहर बसाये। किन्तु पुरुषों ने जहाँ पहले गान किया है, ऐसे बाहुकेतु, पुण्डरीक, हरिकेतु, सेतकेतु, सारिकेतु, श्रीबाहु, श्रीगृह, लोहार्गल, अरिजय, स्वर्ग। लीला, वज्रार्गल, बज्रविमोक, महीसारपुर, जयपुर, सुकृतमुखी, चर्तुमुखी, वहुमुखी, रता, विरता, अखण्डलपुर, विलासयोनिपुर, अपराजित, काँचीदाम, सुविनय, नभःपुर, क्षेमंकर, सहचिन्हपुर, कुसुमपुरी, संजयन्ती, शक्रपुर, जयन्ती, वैजयन्ती, विजया, क्षमंकटी, चन्द्रभासपुर, रविभासपुर, सप्तभूतलावास, सुविचित्र, महानपुर, चित्रकूट, त्रिकूटक, वैश्रवणकूट, शशिपुर, रविपुर, धिमुखी, वाहिनी, सुमुखी, नित्योद्योतिनी, और श्रीरथनुपुर, चक्रवालये उन नगर और नगरियोंके नाम रक्खे। इन नगरोंके बीचों